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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

हिंदी कविता : इंसान को जीतने का जुनून होना चाहिए // गौरव झा



   GAURAV JHA

( Writer, Journalist, columnist)

इंसा को जीतने का जुनून होना चाहिए,

हो गर कठिन रास्ता उस पर चलना चाहिए,

انسان کو حوصلہ افزائی کرنا چاہئے،
اس مشکل راستے پر چلنے کے لئے یقینی بنائیں،

हारकर भी जीतने का हौसला रखना चाहिए,
मकाम पाने के लिए दिन-रात संघर्ष करना चाहिए।

جیتنے کے لئے بھی حوصلہ افزائی کی جانی چاہیئے،
کام حاصل کرنے کے لئے، آپ کو دن اور رات سے لڑنا چاہئے.

गर मां का हाथ सर पे हो तो मनोबल बढ़ जाता है,
मंजिल भले ना मिले,पर दिल को संबल मिलता है।

اگر ماں کا ہاتھ ہاتھ پر ہے، تو حوصلہ بڑھاتا ہے،
فرش نہیں پایا جا سکتا ہے، لیکن دل کا انعام ہے.

जो सुकून मां की गोद में,वह शहर में कहां,ए गौरव
असली खुशी तो हमेशा  गांवों में मिला करती है।।

واحد ماں کے گودام میں، جہاں شہر میں، فخر ہے
گاؤں میں اصل خوشی ہمیشہ ملتی ہے.

भले शहर की सबको चाय की प्याली अच्छी लगती हो,
हमें पटसा गांव की खेतों की हरियाली अच्छी लगती है।

اگرچہ شہر میں ہر ایک کپ کی چائے کی طرح لگ رہا ہے،
ہم پوٹا گاؤں کے سبز شعبوں کو پسند کرتے ہیں.

टूटे भी तो इस कदर  कि, हमें फिर कभी जोड़ ना सका,
जज्बा तो बहुत था,लोग तोड़ने तो आए गर तोड़ ना सका।

یہاں تک کہ اس طرح ٹوٹے ہوئے، ہم میں شامل نہیں ہوسکتی،
بہت جذبات تھی، لوگوں نے توڑ دیا اور توڑ نہیں سکا.

भले मिलती ना ढ़ेर सारी सुख-सुविधाएं अपने गांव में,
तेरे शहर दिया ही क्या दुख व दुविधाएं यहां से ले जा तू।

تمام سہولیات کے علاوہ، آپ کے گاؤں میں،
یہاں آپ کے شہر سے کیا غم و غصہ ہے

घर से निकला था, बहुत सोचा मिलेगा मुझे आराम
तेरे शहर की गंदी हवाओं में मेरा जीना हुआ हराम।

گھر سے باہر نکل گیا، بہت سارے سوچ مجھے آرام ملے گی
میرے شہر کے گندی بادلوں میں میری زندہ ہراس

लगता है शहर की हवाओं को कर रक्खा है कब्ज़ा,
हवाओं को आने दें ज़रा मेरे अपने गांव की ओर।।।

ایسا لگتا ہے کہ شہر کی ہواؤں پر قبضہ کر لیا جاتا ہے،
ہوا میرے گاؤں میں آو ...

ना जाने बहुत दिनों से रुठ के बैठा है मेरा गांव मुझसे,
शहर से गांव गर जाओगे तो मेरा उसे पैगाम देना।।।

میں کئی دنوں تک روتھ میں بیٹھا رہا ہوں، میرا گاؤں مجھ سے ہے،
اگر یہ ایرر برقرار رہے تو ہمارے ہیلپ ڈیسک سے رابطہ کریں. اس ویڈیو پر غلط استعمال کی اطلاع دیتے ہوئے ایرر آ گیا ہے.
                  ✍️✍️आपका रचनाकार:-- गौरव झा
                                  (ग्वालियर, मध्यप्रदेश)
آپ کے موسیقار: - گورھا جی
                  (گوادر، مدھدی پردیش)

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