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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

गजल//कवि गौरव झा

कहीं तो मुझे दिल लगाना पड़ेगा,
बुझते दिये को ज़रा जलाना पड़ेगा।

साथ होकर भी जाने क्यूँ दूर-दूर है,
ये भी तुझे क्या मुझे बताना पड़ेगा।

बैठना कभी-कभी तुम साथ मेरे भी,
तुम्हें कुछ कहानी मुझे सुनाना पड़ेगा।

ख़ामोश बैठी रहती तुम भी कभी क्या,
तुम्हारे मन में जो है वो भी कहना पड़ेगा।

अंधेरों में जला देता हूँ ख़ुद दुनिया का दीया,
बुझते दिये को ज़रा रोज़ जलाना पड़ेगा।

दीपक हूँ जग का मिटाता हूँ धरा का अंधेरा,
ख़ुद रोशनी बनके उजाला लुटाना पड़ेगा।।

झूठ खुलेआम बेचते देख रहा हूँ इस अंधे शहर में,
ए शहर!तुझे  ख़ुद आईना मुझे दिखाना पड़ेगा।।

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