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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

कविता-- फरेबी दुनिया

हम  लोग हैं "गौरव"ऐसे जल्दी किसी के जान का सौदा  कभी भी नहीं करते,
करते हैं गैरों को अपनी जान देकर बचाना,लेकिन जियादा हम दिखावा नहीं करते।
कलमकार हूँ ,इस झूठे फरेबों के बाजारों को देखकर चुप रहते हैं कभी-कभी बेशक,
जो हूँ वहीं लिखता हूँ, दुश्मन भी गर प्यार से मिले तो लुटा देता हूँ अपनी जान,
जो हूँ अपनी बदौलत फिर भी हर किसी को मसलने की हम तमन्ना नहीं करते।
हथेलियों की लकीरों से जियादा खुद पे होता है भरोसा,नफ़रत के बीच हम बोया नहीं करते,
थक जाते हैं चलते-चलते हम अक्सर  इस दौर में बेशक, लेकिन किस्मत पे कभी हम रोया नहीं करते।
फरेबों की दुनिया में बिकते हैं ईमान रोज़, हैं क़लम के बेटे  हम जल्दी सौदा नहीं करते,
आदतन है मेरी सच लिखने की हमेशा,मौत भले आ जाएँ लेकिन समझौता नहीं करते।
करते हैं झुककर गुफ्तगू अपनों से इस दौर में हम बेशक" ए गौरव"
गरजते हैं जो बादल पता है मुझे,वो जमीं पे कभी बरसा नहीं करते।

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