b:include data='blog' name='all-head-content'/> Skip to main content

Featured

हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

इंतिहा है ज़रा इस क़दर ज़ुल्म की अब चुप रहो,
बागवाँ के फूल सदियों से आजकल मुरझाए है,

दहशत है चारों ओर यहाँ देखो और चुप रहो
आतंक फैलाने वाले को कुछ न कहो चुप रहो,

इस ज़माने में कौन सुनता है फ़रियाद किसकी,
गुज़र रहे हो अंधेरी नगरी से देखकर चुप रहो।

सैलाब आया है भ्रष्ट्रों और यहाँ देश में गद्दारों का,
हवा सहमी हैं सदियों से शहर में ज़रा चुप रहो।

गौरव अंधेरा मिट सकेगा नहीं इस धरा पे कभी भी
लगाते आरोप सियासत में एक दूजे पे देखो चुप रहो।

बंद करलो अब अपनी घर की सारी ये खिड़कियां,
बहकी-बहकी हैं  ये फिजाएँ अब ज़रा चुप रहो।।

ए शहर!बेहिसाब ख़ुश न हो अपनी मंज़िल पाकर,
आगे है घना कोहरा  ये देखकर ज़रा तुम चुप रहो।।

दहशत और महँगाई बढ़ रही है ज़ुबान पे लोगों के,
ये सब देखकर  कुछ न बोलो अब ज़रा चुप रहो।।

Comments