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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

ग़ज़ल//कवि गौरव

इस शहर में आजकल शख़्स झूठ बोलता है,
आईना ही हर-दौर में सबका राज़ खोलता है।

चंद मसीहा है बना बैठा अपने शहर में आज,
गज़ब है आजकल कोयले को हीरा बोलता है,

राज़ की बात है बिकता है बाजारों में ईमान,
देखों शहर के परिंदें भी ऊँची उड़ान उड़ता है।।

सुनाने लगा है मसीहा यहाँ अपनी मन की बात,
यहाँ तो हर शख़्स ही मीठी जुबान बोलता है।।

गौरव ज़माने में बन बैठा है सियासत के पुजारी,
इस शहर का आईना ही यहाँ पत्थर बोलता है।।

अंज़ाम से डरते वो जिसके आंखों में अंगारे न हो,
धरा पे हर शख़्स अभी जनहित की बात बोलता है।।

अपना है ये मुल्क में इरादे रखते नहीं कभी भी नेक,
आजकल मसीहा भी तो ख़ुद मीठी जुबां बोलता है।

जुबां ही है जिसकी यहाँ पे हिंदी और उर्दू,ए दोस्त
अदब से वहीं शख़्स सर झुकाकर यहाँ बोलता है।।

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