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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

ग़ज़ल

याद जब तुम्हारी मुझे आती है,
कमबख्त मुझे बहुत रूलाती है।

तन्हाई में अक्सर ख़ुद जीता हूँ,
ग़म तुम्हारे भी हर रोज़ पीता हूँ।

गुफ्तगू तुझसे ना हो कोई बात नहीं,
तिरी याद ही मुझे बहुत सताती है।

चहरे तुम्हारे कभी भूल न पाया बेशक
लगता है कमरे में आके तुम समझाती हो।

याद आती है तुम्हारी जब भी मुझे
अपने पास आते आहट सुनाई देती है।

मरकर भूलाना न मुश्किल होगा कभी,
क्या कहूँ तिरी याद मुझे हर रोज़ आती है।

ख्वाईश इंसान को कभी जीने नहीं देती,
आँखों से गिरी आसूँ तिरी बहुत सताती है।

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