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Gaurav Jha is a signature of Kalam who is a litterateur as well as a skilled speaker, leader, stage operator and journalist. His poems, articles, memoirs, story are being published in many newspapers and magazines all over the country. At a very young age, on the basis of his authorship, quality,ability.he has made his different fame and his identity quite different in the country. They have a different identity across the country.
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दर्शन
दर्शन एक अति प्राचीन विचारधारा है। जैसा कि हम सब मुख्यतौर पर जानते हैं। दर्शनशास्र का अर्थ होता है-- दर्शन +शास्त्र।दर्शन कहने का मुख्य तात्पर्य होता है-- नजरिया या देखना।दर असल हम कह सकते हैं एक दार्शनिक जो अपने नज़रिए, दृष्टिकोण से हर विषय, पहलुओं और चीज़ों को देखता है।ऐसा मैं आमतौर पर मानता हूँ कि जब भी एक दार्शनिक हर विषयों पर चिंतन करता है तो उसकी सोच भी उसी अनुसार संभवतः हो जाती है।मेरे कहने का तात्पर्य यह है सोच उसकी लगातार सकारात्मक हो जाती है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि एक मनुष्य का स्वभाव,उसका मन हरेक चीज़ों को जानने का अत्यधिक पिपासु होता है।।वह अत्यधिक चीज़ों को जानने,समझने और पढ़ने में उसकी उत्सुकता अत्यधिक देखी जा सकती है।जब भी हम अपने जीवन के बारे में अत्यधिक जानने के इच्छुक होते हैं तो आमतौर पर हम अपने आसपास के चीज़ों के बारे में जानने का कार्य करते हैं। जैसे प्रकृति, पेड़-पौधे,ब्रह्यांड के बारे में जानने की इच्छा मुख्यत: प्रबल होने लगती है।
दर असल दुनिया में एक से बढ़कर एक मर्मज्ञ दार्शनिक हुए हैं।चाहे वो सुकरात,स्वामी विवेकानंद,अरस्तु या महात्मा गाँधी हो। जिन्होंने अपने जीवन के विभिन्न विचारों द्वारा समाज को सही दिशा और मार्ग प्रशस्त करने का कार्य किया। जैसा कि हम सब जानते हैं कि दर्शशास्त्र एक गुढ़ विषय है जिसका निर्माण ही मुख्यतौर पर मानवीय जीवन, परिस्थितियों और आस-पास के परिवेशों से होता है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि दर्शनशास्र एक जटिल और गंभीर विषय है।यह प्य प्
दर असल यह मुख्यतौर पर अपने आंतरिक और मन की स्थितियों, परिस्थितियों को ख़ुद के नज़रिए से ख़ोज करने की प्रक्रिया है। दर्शनशास्र को एक जटिल और कठिन तर्क शास्त्र मानने का मुख्य कारण यह है कि एक व्यक्ति या दार्शनिक धीरे-धीरे वह अपने नज़रिए से चीज़ों, विषय-वस्तुओं को अत्यधिक गहराई में समझने, जानने के लिए पिपासु होता है।वह हर चीज़ को गंभीरता पूर्वक अपने बुद्धिमतानुसार ,तर्क के अनुसार संभवतः जानना चाहता है लेकिन इसमें मुझे एक उलझन स्पष्टतौर पर दिखाई देती है कि ज्यों-ज्यों हम दर्शनशास्र की तरफ़ क़दम बढ़ाते हैं। विषय-वस्तुओं,जीवन को अत्यधिक करीबी से जानने का प्रयास करने लगते हैं तो बहुत सारी समस्याएँ हमारे समक्ष उत्पन्न होने लगती है।जैसा कि लोगों से संवाद करने के तरीके में भी मुख्यतौर पर देखा जा सकता है।ऐसा इसलिए होता है कि हम हर चीज़ को अपने दार्शनिक गुणों के कारण प्रस्तुत करने का प्रयास करते हैं जो हर किसी भी व्यक्ति के सोच से परे होता है।यह विषय की गहराई में अत्यधिक जाने पर विभिन्न प्रकार की समस्याएँ भी उत्पन्न हो सकती है।जैसा कि लोगों के साथ संवाद करने में परेशानी का भी सामना करना पड़ सकता है।क्योंकि आप जिस भी व्यक्ति से बातचीत कर रहें हैं।ये ज़रूरी नहीं है कि वह व्यक्ति आपकी मन की स्थिति को समझता हो।आप कम से कम शब्दों में अपनी बातों को कहना मुख्य रूप से शुरू कर देते हैं जिससे दूसरा व्यक्ति विषय की गहराई को समझने में दिक्कतें आती है।मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि दर्शन शास्त्र मुख्यतौर पर एक तप होता है।इस शास्त्र के द्वारा मुख्यतौर पर हम ख़ोज में लगे रहते हैं।हम कुछ नया या सबसे अलग चीज़ों को अपनी बुद्धिमत्तानुसार खोजने का प्रयास करते हैं।यह एक ऐसी विधा है जिसका लाभ भी देखा जा सकता है।अगर हम दार्शनिक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं तो हम हर चीज़ों को बड़ी बारीकी से अध्ययन कर सकते हैं,उसे गहराई से समझ सकते हैं। जीवन में घटित होने वाली हर एक घटनाक्रम का पुर्वानुमान पहले लगाया जा सकता है। अपनी लिखी पंक्तियों के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ---------------------------
"दर्शन एक तार्किक ग्रन्थ है। जो जीवन के विभिन्न आयामों और पहलुओं के बारे में जानता है, जिसके माध्यम से यह तीक्ष्ण बुद्धि और विवेकपूर्ण है। कोई भी व्यक्ति दृष्टि से दूर रहकर भी दो व्यक्तियों की अनुभूति, संवेदना को आसानी से समझ सकता है!!"
"philosophy is a logical scripture.which is known about various dimensions and aspect of life through it's sharp intellect and prudence.one can easily understand feeling, sensation of two persons even by staying away from vision."
मुख्यतौर पर हम कह सकते हैं कि मानव की जब से उत्पति हुई है वो हर चीज़ों को जानने का पिपासु होता है और हाँ ये चीज़ें किसी भी व्यक्ति के बचपन से जानने की ललक, किसी खास विषय के बारे में चिंतन करना, गंभीरतापूर्वक जानने का प्रयास करना स्वाभाविक होती है जो उसके बचपन की प्रवृतियों पर मुख्यतौर पर निर्भर करता है कि उसका जीवन किस परिस्थितियों से होकर गुजरा।बचपन का जीवन उसका कैसा रहा।यह चीज़ भी इसमें देखा जा सकता है।दर असल हम सब जानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो समाज में रहना पसंद करता है। समाज में जीवन-यापन करना पसंद करता है।यह मानव का गुण और स्वभाव और स्वभाव होता है।जब से मनुष्य संसार में आया है तब से वह अपने विभिन्न प्रश्नों के उत्तर को सुलझाने में लगा हुआ है।वह जानने समझने की कोशिश कर रहा है।मुख्यतौर पर हर एक आदमी की सोच पर निर्भर करता है कि वह क्या सोच रहा है?किस नज़रिए से विषय-वस्तुओं को समझ रहा है।दर असल जैसा व्यक्ति के विचार होते हैं उसी प्रकार की क्रियाकलाप को वह करना पसंद करता है। एक मनुष्य का मुख्य तौर पर जीवन का लक्ष्य होता है कि वह अच्छी से अच्छी संस्था, यूनिवर्सिटी में दाखिला लेकर अच्छी शिक्षा प्राप्त करें और अपने राष्ट्र और समाज के प्रति मन में प्रेम और समर्पण जागृत करें। समाज को अपने ज्ञान और क्षमता के आधार पर समाज को सुव्यवस्थित, सुदृढ़ बनाने हेतु प्रयासरत रहें और परिवार के प्रति समर्पण ही किसी मनुष्य के जीवन का आमतौर पर उद्देश्य होता है।यह जो मनुष्य को जीवन मिला है सिर्फ़ खेल-कूद करने के लिए बल्कि अपने नैतिक-मूल्यों, कर्त्तव्यों और अपनी जिम्मेदारियों को समझने के लिए मिला है।अपने समाज को व्यवस्थित बनाने के लिए मिली है जो कि दर्शनशास्र के द्वारा ही संभव हो सकता है। एक मनुष्य का हमेशा से ही जन्म, उद्देश्य,कारण और प्रकृति को, विभिन्न संबंधों को अपने तीक्ष्ण बुद्धिमत्तानुसार समझना चाहता है और संचार की प्रक्रिया को जानना चाहता है। इसी को हम दार्शनिकता कहते हैं।
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