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Gaurav Jha is a signature of Kalam who is a litterateur as well as a skilled speaker, leader, stage operator and journalist. His poems, articles, memoirs, story are being published in many newspapers and magazines all over the country. At a very young age, on the basis of his authorship, quality,ability.he has made his different fame and his identity quite different in the country. They have a different identity across the country.
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जीवन का संपूर्ण सार है साहित्य।
जीवन का उद्देश्य ही आनंद है।मनुष्य जीवन हमेशा आनंद की खोज में लगा रहता है।किसी को वह रत्न द्र्व्य धन से मिलता है। किसी को भरे पूरे परिवार से किसी को लम्बा चौड़े भवन से , किसी को ऐश्वर्य से , लेकिन साहित्य का आनंद इस आनंद से ऊँचा है। इससे पवित्र है, उसका आधार सुन्दर और सत्य है वास्तव में सच्चा आनंद सुन्दर और सत्य से मिलता है।उसी आनंद को दर्शाना वही आनंद उत्पन्न करना साहित्य का उद्देश्य है। ऐश्वर्य आनंद में ग्लानि छिपी होती है।उससे अरुचि हो सकती है। पश्चाताप की भावना भी हो सकती है।पर सुन्दर से जो आनंद प्राप्त होता हे वह अखंड अमर है। ” जीवन क्या है ? जीवन केवल जिन खाना -सोना और मर जाना नहीं है। यह तो पशुओं का जीवन है।मानव जीवन में भी यही सब प्रवृत्तियाँ होती है।क्योंकि वह भी तो पशु है,पर उसके उपरांत कुछ और भी होता है, उसमे कुछ ऐसी मनोवृत्तियां होती है, जो प्रकृति के साथ हमारे मेल में बाधक होती है। जो इस मेल में सहायक बन जाती है।जिन प्रवृत्तियाँ में प्रकृति के साथ हमारा सामंजस्य बढ़ता है।वह वांछनीय होती है,जिनमे सामंजस्य में बाधा उत्पन्न होती है , वे दूषित है,अहंकार क्रोध या द्वेष हमारे मन की बाधक प्रवृत्तियाँ है। यदि हम इन्हें बेरोक-टोक चलने दे तो निसंदेह वो हमें नाश और पतन की और ले जायेगी इसलिए हमें उनकी लगाम रोकनी पड़ती है।उन पर संयम रखना पड़ता है।जिससे वे अपनी सीमा से बाहर न जा सके हम उन पर जितना कठोर संयम रख सकते है।उतना ही मंगलमय हमारा जीवन हो जाता है।”
” साहित्य ही मनोविकारों के रहस्यों को खोलकर सद्वृत्तियो को जगाता है।साहित्य मस्तिष्क की वस्तु बल्कि ह्रदय की वस्तु है। जहाँ ज्ञान और उपदेश असफल हो जाते हे वह साहित्य बाज़ी मार ले जाता है।साहित्य वह जादू की लकड़ी है,जो पशुओ में ईट पत्थरों में पेड़ -पौधों में विश्व की आत्मा का दर्शन करा देता है। ”
”जीवन मे साहित्य की उपयोगिता के विषय में कभी- कभी संदेह किया जाता है। कहा जाता है कि जो स्वभाव से अच्छे हे वो अच्छे ही रहेंगे। चाहे कुछ भी पढ़े जो बुरे है,वो बुरे ही रहेंगे चाहे कुछ भी पढ़े।इस कथन में सत्य की मात्रा बहुत कम है।इसे सत्य मान लेना मानव चरित्र को बदल देना होगा। मनुष्य स्वभाव से देवतुल्य है। जमाने के छल प्रपंच या परिस्थितियों से वशीभूत होकर वह अपना देवत्य खो बेठता है। साहित्य इसी देवत्व को अपने स्थान पर प्रतिष्ठित करने की चेष्टा करता है।उपदेशों से नहीं,नसीहतो से नहीं भावो से मन को स्पंदित करके , मन के कोमल तारो पर चोट लगाकर प्रकृति से सामंजस्य उत्पन्न करके।हमारी सभ्यता साहित्य पर ही आधारित है। हम जो कुछ है,साहित्य के ही बनाए है।विश्व की आत्मा के अंतर्गत राष्ट्र या देश की आत्मा एक होती है। इसी आत्मा की प्रतिध्वनि हे ‘ साहित्य ‘ ”।
”हम अक्सर साहित्य का मर्म समझे बिना ही लिखना शुरू कर देते है।शायद हम समझते है कि मज़ेदार चटपटी और ओज़पूर्ण भाषा में लिखना ही साहित्य है।भाषा भी साहित्य का अंग है।पर स्थायी साहित्य विध्वंस नहीं करता है।निर्माण करता है।वह मानव चरित्र की कालिमा ही नहीं दिखलाता है।उसकी उज्वलताय दिखाता है।मकान गिराने वाला इंजिनियर नहीं कहलाता इंजिनियर तो निर्माण ही करता है।हममे से जो युवक साहित्य को अपने जीवन का ध्येय बनाना चाहते उन्हें बहुत ही महान संयम की आवशयकता होगी क्योंकि वह अपने को एक महान पद के लिए तैयार कर रहे हैं।साहित्यकार को आदर्शवादी होना ही चाहिए। अमर साहित्य के निर्माता विलासी प्रवृति के मनुष्य नहीं थे ।कबीर भी तपस्वी ही थे ” हमारा साहित्य अगर आह उन्नति नहीं करता है।तो इसका कारण यहीं है कि हमने साहित्य रचना के लिए कोई तैयारी नहीं की – दो चार नुस्खे याद करके हाकिम बन बैठे साहित्य का उत्थान राष्ट्र का उत्थान है।और हमारी ईश्वर से यही याचना है।कि हममें सच्चे साहित्य सेवी उत्पन्न हो ,सच्चे तपस्वी सच्चे आत्मज्ञानी .”
------- @💐आपका कलमकार गौरव झा
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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा
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