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Gaurav Jha is a signature of Kalam who is a litterateur as well as a skilled speaker, leader, stage operator and journalist. His poems, articles, memoirs, story are being published in many newspapers and magazines all over the country. At a very young age, on the basis of his authorship, quality,ability.he has made his different fame and his identity quite different in the country. They have a different identity across the country.
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बेहतर शिक्षा पद्धति से देश का विकास
“हमारी मनोवृत्ति का निर्माण हमारे जीवन, हमारे आचरण के अनुरूप ही होता है। हमारे जीवन तथा आचरण का मूल आधार है हमारी शिक्षा।”
किसी देश का विकास उस देश की शिक्षा प्रणाली पर निर्भर होता है, क्योंकि देश की उन्नति के लिए हर व्यक्ति जिम्मेदार है और वो ही देश को अपने ज्ञान, संस्कार और अच्छे आचरण के जरिये देश को बुलंदियों पर पहुंचा सकता है! आज का शिक्षित वर्ग ही देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चला सकता है किन्तु अगर शिक्षा प्रणाली ही ठीक न हुई तो उस देश का भविष्य अंधकारमय हो सकता है, आज जरुरत है एक अच्छी शिक्षा प्रणाली की जिससे ज्ञानवान और एक अच्छे आचरण वाला व्यक्ति बन सके!
आजकल हर जगह शिक्षा प्रसार की नई-नई योजनाएं बन रही हैं। हमारी राष्ट्रीय सरकार इस बात की घोषणा कर चुकी है कि वह शीघ्र ही देश से निरक्षरता को मिटा देगी। परन्तु विचार यह करना है कि हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली कैसी है और वह किस प्रकार के जीवन का निर्माण कर रही है तथा हमारी शिक्षा वास्तव में कैसी होनी चाहिए।
आजकल हमारी शिक्षा की व्यवस्था वास्तव में बहुत दोषयुक्त हो गई है। इसको मिटाकर हमें ऐसी शिक्षा-दीक्षा का विधान करना होगा जो हमें स्वयं अपने ऊपर विजय प्राप्त कर सकने में समर्थ बना सके। ज्ञान का अन्तिम लक्ष्य चरित्र निर्माण ही होना चाहिये। जब तक शिक्षा के कुछ उद्देश्य निर्धारित नहीं होंगे तब तक शिक्षा प्रणाली में कोई सुधार नहीं हो सकता है। इसलिए शिक्षा के कुछ उद्देश्य है:-
जनतांत्रिक नागरिकता का विकास- इस देश के जनतंत्र को सफल बनाने के लिए प्रत्येक बालक को सच्चा, ईमानदार तथा कर्मठ नागिरक बनाना परम आवश्यक है | अत: शिक्षा का परम उद्देश्य बालक को जनतांत्रिक नागरिकता की शिक्षा देना है | इसके लिए बालकों को स्वतंत्र तथा स्पष्ट रूप से चिन्तन करने एवं निर्णय लेने को योग्यता का विकास परम आवश्यक है, जिससे वे नागरिक के रूप में देश की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक सभी प्रकार की समस्याओं पर स्वतंत्रतापूर्वक चिन्तन और मनन करके अपना निजी निर्माण लेते हुए स्पष्ट विचार व्यक्त कर सकें ।
कुशल जीवन-यापन कला की दीक्षा – शिक्षा का दूसरा उद्देश्य बालक को समाज में रहने अथवा जीवन-यापन की कला में दीक्षित करना है | एकांत में रहकर न तो व्यक्ति जीवन-यापन कर सकता है और न ही पूर्णत: विकसित हो सकता है | उसके स्वयं के विकास तथा समाज के कल्याण के लिए यह आवश्यक है कि वह सहअस्तित्व की आवश्यकता को समझते हुए व्यवहारिक अनुभवों द्वारा सहयोग के महत्व का मूल्यांकन करना सीखे | इस दृष्टि में चेतना तथा अनुशासन एवं देशभक्ति आदि अनेक सामाजिक गुणों का विकास किया जाना चाहिये जिससे प्रत्येक बालक इस विशाल देश के विभिन्न व्यक्तियों का आदर करते हुए एक-दूसरे के साथ घुलमिल कर रहना सीख जायें ।
व्यवसायिक कुशलता की उन्नति – शिक्षा का तीसरा उद्देश्य बालकों में व्यवसायिक कुशलता की उन्नति करना है | इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लये व्यासायिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है | अत: बालकों के मन में श्रम के प्रति आदर तथा रूचि उत्पन्न करना एवं हस्तकला के कार्य पर बल देना परम आवश्यक है | यही नहीं, पाठ्यक्रम में विभिन्न व्यवसायों को भी उचित स्थान मिलना चाहिये जिससे प्रत्येक बालक अपनी रूचि के अनुसार उस व्यवसायों को चुन सकें जिसे शिक्षा समाप्त करने के पश्चात अपनाना चाहता हो ।
व्यक्तित्व का विकास – शिक्षा का चौथा उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास करना है | व्यक्ति के विकास का तात्पर्य बालक के बौद्धिक विकास, शारीरिक, सामाजिक तथा व्यवसायिक आदि सभी पक्षों एवं रचनात्मक शिक्तियों के विकास से है | इस उद्देश्य के अनुसार बालकों को क्रियात्मक तथा रचनात्मक कार्यों को करने के लिए प्रेरित करना चाहिये जिससे उनमें साहित्यिक, कलात्मक एवं सांस्कृतिक आदि नाना प्रकार की रुचियों का निर्माण हो जाये ।
----- आपका कलमकार गौरव झा
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