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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

गजल -- इंतजार

देख रहा हूँ,तेरी राह वर्षो से
कभी तो हँस के सलाम दे दो,
मेरे हजारों खतों के बदले छोटा ही सही,कोई पैगाम दे दो।
      मेरे अनगिनत अदब देख ,
      तुम भी थोड़ा इन्कलाम दे दो,
      इस मर रहमे मुहब्बत का कोई नाम दे दो।
      मेरे इंतजारों का कोई मुकाम दे दो।

मदहोश कर दें,मेरे रूह तक को,  अपने आँखों का वो  सिलाजाम दे दो,
डूब जाऊं मैं तुझमें कहीं,
ऐसी कोई हंसी शाम दे दो,
इस मर रहमे मोहब्बत का कोई नाम दे दो,
मेरे इंतजारों का कोई मुकाम दे दो।।

इस दर्द के सिलसिले को अब विराम दे दो,
अधूरी सी मेरी कहानी का कोई आयाम दे दो,
थकने लगी है,अब आँखें मेरी,
अपनी बाँहों में मुझे आराम दे दो,
इस मर रहमे मोहब्बत का कोई नाम दे दो,
मेरे इंतजारों का कोई मुकाम दे दो।

पूजा है,जिसे रात दिन अपने खुदा की तरह,
जो तुममें दिखता वो मेरा निजाम दे दो,
इस मर रहमे मुहब्बत का कोई नाम दे दो,
मेरे इंतजारों का कोई मुकाम दे दो।।।

                                     -------- ✍ कवि गौरव झा

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