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Gaurav Jha is a signature of Kalam who is a litterateur as well as a skilled speaker, leader, stage operator and journalist. His poems, articles, memoirs, story are being published in many newspapers and magazines all over the country. At a very young age, on the basis of his authorship, quality,ability.he has made his different fame and his identity quite different in the country. They have a different identity across the country.
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लेख-- जनता अब है समझदार।
राजनीति पर से धर्म का अंकुश हटा तो वह निरंकुश हो गई।युद्ध,प्यार और राजनीति में सब कुछ उचित-अनुचित चलता है।इस मान्यता ने उपरोक्त तीनों ही तथ्यों को निकृष्ट स्तर का बना डाला।राजनेतृत्व का उत्तरदायित्व धर्म नेतृत्व से बढ़कर है।धर्म नेतृत्व केवल आंतरिक क्षेत्र को प्रभावित करता है,जबकि राजतंत्र अब जनता के भौतिक ही नहीं आंतरिक जीवन को प्रभावित करने के साधनों पर भी कब्जा जमा चुका है।शिक्षा राजसत्ता के हाथ में है। शिक्षा के माध्यम से लोकमानस एवं पीढ़ियों का चरित्र तैयार होता है। किसी जमाने में यह क्षेत्र पूर्ण रूपेण ऋषि मनिषियों के हाथ में था,अब तो नोट छापने की तरह सरकार की अपनी शिक्षा पद्धति द्वारा पीढ़ियों के मन छापती है। ऋषियों से शिक्षा पद्धति व उत्तरदायित्व छिनकर अब सरकार के सुपुर्द हो गया,तो यह भी आवश्यक था कि इस क्षेत्र में मनीषियों जैसी दूरदर्शिता और सदाशयता काम करती।साँचा खराब होगा तो ढ़लने वाली चीजें खराब बनेंगी। शिक्षा पद्धति तथा शिक्षा संचालक सदोष होगी तो उसके साँचे में ढला शिक्षित वर्ग अपने में ढलाई के सारे दोष प्रदर्षित करेगा।
शासन ने दैनिक जीवन की गतिविधियों पर नियंत्रण कर लिया है।अब हमें अन्न,वस्त्र,चीनी,बिजली,व्यवसाय,आजीविका,चिकित्सा,वाहन आदि सरकारी नियंत्रण के अंतर्गत मिलते हैं।न्याय और सुरक्षा के लिए सब उसी पर निर्भर हैं। व्यक्ति की स्वतंत्रता दिन-प्रतिदिन सीमित होती चली जा रही है। प्रचार साधन सब उसी के हाथ में हैं।पत्र-पत्रिकाएँ,प्रेस,प्रकाशन आदि सरकारी प्रोत्साहन से परमिट ,दूसरा यह कि उसके क्रिया-कलाप में सेवा -भावना कर्ज,अनुदान लेकर देखते-देखते आकाश तक बढ सकते हैं और जरा -सी टेढी नजर होकर प्रतिद्वंद्विता में लड़खड़ाकर जमीदोज हो सकते हैं।
राजनीति में धूर्तता आवश्यक है।यह मान्यता सर्वथा गलत है।शत्रु से युद्ध करते समय अथवा चोरों का पता लगाते समय इस तरह की चतुरता कभी अपवाद या आपत्ति धर्म की तरह बरती भी जा सकती है,पर परस्पर सहयोग एवं जनसेवा के क्षेत्र में राजतंत्र को धर्म-तंत्र से अधिक निर्मल ,निस्वार्थ एवं उद्दात होना चाहिए।समाजवाद,गाँधीवाद आदि के नारे भले ही कितने अच्छे क्यों न हों,उन्हें कार्यान्वित करने का उत्तरदायित्व जिन लोगों पर है,वे यदि घटिया स्तर के होंगे तो उनके द्वारा हाथ डाले गए हर काम में घटियापन ही नजर आएंगे। और राजसत्ता जनता की सुख-सुविधा बढ़ाने वाली न रहकर विपत्ति ही बढ़ाती चली जाएगी।
----- कलमकार गौरव झा
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