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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

पर्यावरण पर आधारित है हमारा भविष्य।

नमस्कार।आप सबो को विश्व पर्यावरण दिवस की ढ़ेर सारी शुभकामनाएँ।
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पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। 'परि' का   शाब्दिक अर्थ चारों ओर तथा 'आवरण' का शाब्दिक अर्थ परिवेश है।पर्यावरण संरक्षण  से तात्पर्य पर्यावरण की सुरक्षा करना वृक्ष –वनस्पतियों का मानव जीवन में अत्यधिक महत्व है। वे मनुष्य के लिए अत्यंत उपयोगी हैं।वे मानव जीवन का आधार हैं, परन्तु आज मानव इनके इस महत्व व् उपयोग को न समझते हुए इनकी उपेक्षा कर रहा है।गौण लाभों को महत्व देते हुए इनका लगातार दोहन करता चला जा रहा है.जितनी वृक्ष कटते हैं,उतनी लगनी भी चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं हो रहा है और इनकी संख्या लगातार घटती जा रही है।परिणामत: अनेकों समस्याएँ मनुष्य के सामने उपस्थित हो रही है।
    प्राणी अपने जीवन हेतु वनस्पति जगत पर आश्रित है।मनुष्य हवा में उपस्थित ऑक्सीजन को श्वास द्वारा ग्रहण करके जीवित रहता है।पेड़-पौधे ही प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन छोड़ते हैं।इस तरह मनुष्य के जीवन का आधार पेड़-पौधे ही उसे प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त प्राणियों का आहार वनस्पति है।वनस्पति ही प्राणियों को पोषण प्रदान करती है. इसलिए पर्यावरण संरक्षण बहुत जरुरी है।
    पिछले दिनों कल-कारखानों की वृद्धि को विकास का आधार माना जाता रहा है। खाद्य उत्पादन के लिए कृषि तथा सिंचाई पर जोर दिया जाता रहा है, परन्तु वन-संपदा की महत्ता समझने की ओर जितना ध्यान देना आवश्यक था, उतना दिया ही नहीं गया. वनों को जमीन घेरने वाला माना जाता रहा और उन्हें काटकर कृषि करने की बात सोची जाती रही है.जलाऊ लकड़ी तथा इमारती लकड़ी की आवश्यकता के लिए भी वृक्षों को अंधाधुंध काटा जाता रहा है। और उनके स्थान पर नए वृक्ष लगाने की उपेक्षा बरती जाती रही है।इसलिए आज हम वन संपदा की दृष्टि से निर्धन होते चले जा रहे हैं और उसके कितने ही परोक्ष दुष्परिणामों को प्रत्यक्ष हानि के रूप में सामने देख रहे हैं।
      वृक्ष-वनस्पति से धरती हरी-भरी बनी रहे तो उससे मनुष्य को अनेकों प्रत्यक्ष व परोक्ष लाभ होते हैं। इंधन व इमारती लकड़ी से लेकर फल-फूल,औषधियों प्रदान करने, वायुशोधन, वर्षा का संतुलन,पत्तों से मिलने वाली खाद,धरती के कटाव का बचाव, बाढ़ रोकने, कीड़े खाकर फसल की रक्षा करने वाले पक्षियों को आश्रय आदि अनेक अनगिनत लाभ हैं।स्काटलैंड के वनस्पति वैज्ञानिक राबर्ट चेम्बर्स ने लिखा है- वन नष्ट होंगे तो पानी का अकाल पड़ेगा, भूमि की उर्वरा शक्ति घटेगी और फसलों की पैदावार कम होती जाएगी,पशु नष्ट होंगे,पक्षी घटेंगे. वन-विनाश का अभिशाप जिन पांच प्रेतों की भयंकर विभीषिका बनाकर खड़ा कर  देगा वे हैं- बाढ़, सूखा, गर्मी, अकाल और बीमारी. हम जाने-अनजाने में वन संपदा नष्ट करते हैं। और उससे जो पाते हैं, उसकी तुलना में कहीं अधिक गंवाते हैं।
    वायु प्रदूषण आज समूचे संसार के लिए एक बहुत ही विकट समस्या है।शुद्ध वायु का तो जैसे अभाव सा हो गया है।दूषित वायु में साँस लेने वाले मनुष्य और अन्याय प्राणी भी स्वस्थ व नीरोग किस प्रकार रह सकेंगे।शुद्ध वायु ही प्राणों का आधार है। वायुमंडल में संव्याप्त प्राण वायु ही जीव-जंतुओं को जीवन देती है. इसके अभाव में अन्यान्य विषैली गैसों का अनुपात बढ़ता जाता है और प्राणिजगत के लिए विपत्ति का कारण बनता है। शोधकर्ता का मत है कि पृथ्वी के वायुमंडल में प्राण वायु कम होती जा रही है।और दूसरे तत्व बढ़ते जा रहे हैं।यदि वृक्ष-संपदा को नष्ट करने की यही गति रही तो वातावरण में दूषित गैसें इतनी अधिक हो जाएंगी कि पृथ्वी पर जीवन दूभर हो जाएगा। इस विषम स्थिति का एकमात्र समाधान हरीतिमा संवर्धन है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि हरीतिमा संवर्धन नहीं किया गया तो ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएँ विकराल रूप ले लेंगी।
अपने पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी मुख्य जरूरत ‘जल’ को प्रदूषण से बचाना होगा। कारखानों का गंदा पानी, घरेलू, गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल, सीवर लाइन का गंदा निष्कासित पानी समीपस्थ नदियों और समुद्र में गिरने से रोकना होगा। कारखानों के पानी में हानिकारक रासायनिक तत्व घुले रहते हैं जो नदियों के जल को विषाक्त कर देते हैं, परिणामस्वरूप जलचरों के जीवन को संकट का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर हम देखते हैं कि उसी प्रदूषित पानी को सिंचाई के काम में लेते हैं,जिसमें उपजाऊ भूमि भी विषैली हो जाती है। उसमें उगने वाली फसल व सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से रहित हो जाती हैं, जिनके सेवन से अवशिष्ट जीवननाशी रसायन मानव शरीर में पहुंच कर खून को विषैला बना देते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि यदि हम अपने कल को स्वस्थ देखना चाहते हैं तो आवश्यक है कि बच्चों को पर्यावरण सुरक्षा का समुचित ज्ञान समय-समय पर देते रहें। अच्छे व मंहगें ब्रांड के कपड़े पहनाने से कहीं महत्वपूर्ण है उनका स्वास्थ्य, जो हमारा भविष्य व उनकी पूंजी है।
     आज वायु प्रदूषण ने भी हमारे पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। जल प्रदूषण के साथ ही वायु प्रदूषण भी मानव के सम्मुख एक चुनौती है। माना कि आज मानव विकास के मार्ग पर अग्रसर है। परंतु वहीं बड़े-बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से लगातार उठने वाला धुआं, रेल व नाना प्रकार के डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के पाइपों से और इंजनों से निकलने वाली गैसें तथा धुआं, जलाने वाला हाइकोक, ए.सी., इन्वर्टर, जेनरेटर आदि से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड प्रति क्षण वायुमंडल में घुलते रहते हैं। वस्तुतः वायु प्रदूषण सर्वव्यापक हो चुका है।
     सही मायनों में पर्यावरण पर हमारा भविष्य आधारित है, जिसकी बेहतरी के लिए ध्वनि प्रदूषण को और भी ध्यान देना होगा। अब हाल यह है कि महानगरों में ही नहीं बल्कि गाँवों तक में लोग ध्वनि विस्तारकों का प्रयोग करने लगे हैं। बच्चे के जन्म की खुशी, शादी-पार्टी सभी में डी.जे. एक आवश्यकता समझी जाने लगी है। जहां गाँवों को विकसित करके नगरों से जोड़ा गया है। वहीं मोटर साइकिल व वाहनों की चिल्ल-पों महानगरों के शोर को भी मुँह चिढ़ाती नजर आती है। औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के कोलाहल ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। इससे मानव की श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है। ध्वनि प्रदूषण का मस्तिष्क पर भी घातक प्रभाव पड़ता है।
    जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि तीनों ही हमारे व हमारे फूल जैसे बच्चों के स्वास्थ्य को चौपट कर रहे हैं। ऋतुचक्र का परिवर्तन, कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा का बढ़ता हिमखंड को पिघला रहा है। सुनामी, बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि या अनावृष्टि जैसे दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखते हुए अपने बेहतर कल के लिए ‘5 जून’ को समस्त विश्व में ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है।
     वेदशास्त्रों में आंवला,वट,पीपल,तुलसी, आदि वृक्षों को आस्था के प्रतीक के रूप में लोग पूजा करते थे।वृक्ष मनुष्य परिवार के ही अंग हैं,वे हमें प्राण वायु प्रदान करके जीवित रखते हैं. वे हमारे लिए इतने अधिक उपयोगी हैं.जिसका मूल्यांकन करना कठिन है।निश्चिततौर पर हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने का प्रयत्न करना चाहिए।आज सभी लोगों का यह प्रयास होना चाहिए कि पर्यावरण संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाएं।
      निश्चिततौर पर सभी प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए यदि थोड़ा सा भी उचित दिशा में प्रयास करें तो बचा सकते हैं अपना पर्यावरण।
                                         ------ @ कवि गौरव झा

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