b:include data='blog' name='all-head-content'/> Skip to main content

Featured

हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

कविता -- चश्मा की सच्चाई

                      कविता/चश्मा/कवि गौरव झा

दुनिया देखकर चश्मा पहन लेता हूं,गौरव
खुली आंखों से लोग नहीं दिखते।।।

पहनकर चश्मा मैं लोगों को देख पाता हूं,
उनके घर जाकर सुख-दुख में हो आता हूं।

मायूस होकर अपना गीत सुनाने लगा हूं, दुनियावालों
रोज निशा में अपना गीत गुनगुनाने लगा हूं।।।

चश्मा पहनकर ढूंढता हूं, अकेले मैं भटककर,
राहों में चलते-चलते भले कुछ तो हमें मिले।

पहने रहता जब तक चश्मा,देखता हूं चीज़ों को,
वर्ना इँसा कब ठोकर मारकर चला जाए।।।

मुखातिब होता हूं,रोज मैं दुनिया के उस सच से,
जिस पर आम लोगों की नज़र नहीं पड़ती।।

मैं कई वर्षो से भटकता रहा सच की तलाश में,
मंज़िल तक पहुंचते-पहुंचते ज़रा सी देर हो गई।

लोगों से हमें कोई गिला या शिकवा नहीं,ए गौरव
बस!इंसा में मैं सदियों से इंसानियत खोज रहा हूं।

कोई कहता अपन को अच्छा, कोई कहता बुरा,
आख़िर किसकी बात सुने या ना सुने पता नही,?गौरव

दुख की चादर ओढ़ कर,कई रातों से जिए जा रहा हूं,
जग का तमश को  अपना समझकर पिए जा रहा हूं।

मायूस होकर अपना गीत सुनाने लगा हूं, दुनियावालों
रोज निशा में अपना गीत गुनगुनाने लगा हूं।।।














Comments