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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

कविता:-- ज़िंदगी // कवि//शायर//पत्रकार गौरव झा

आईना में झांककर तसल्ली से चहरा देखता है कोई,
भर-रात सड़क पर ज़िंदगी गुजारता है कोई-कोई

ए दोस्त!आराम  की ज़िन्दगी  जीता नहीं दुनिया में कोई,
दो-जूम रोटी खाकर  सड़क किनारे सोता है कोई-कोई

समझते हो तुम जिसे अपना मसीहा, नहीं है वह कोई,
उजालों की तलाश में सफ़र में भटकता है कोई-कोई।

अंज़ाम से हैं डरते वो,जिसका सपना हो ना कोई,गौरव
ख़ुदा ने दी जिसे हुनर,निशा में जला करता है कोई-कोई।

होती नहीं मुहब्बत के सिवा कुछ भी,जानता है कोई,
अटल,दिनकर,कलाम के पथ पर चलता है कोई-कोई।

मासूम काँच टूटता है अक्सर,चोट देता उसे जब है कोई,
महान् व्यक्तित्वों के पदचिन्हों को पहचानता है कोई-कोई।

झूठ  के बाजारों में होता है मुनाफा,भागते यहां सब कोई,
उजाला बनकर दुनिया में, अंधेरों को मिटाता है कोई-कोई।

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