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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

ग़ज़ल:-- कवि गौरव झा

ग़ज़ल//कवि गौरव झा

याद तुम्हारी इस क़दर मुझे क्यूँ आ रही है,
पास होकर तुम दूर मुझसे हुई जा रही हो।

दुनिया की भीड़ में दिखता है तन्हा पूरा शहर,
दिल में इतने ख्वाइश क्यूँ हम सजाएँ जा रहे।

इश्क़ में साँस थमी है, इंतज़ार है मेरे मरने की,
क्यूँ मासूम आँखों में गमों को पिए जा रहे हैं।

फासला क्यूँ है मोहब्बत की राह में इस कदर,
निशा में हम दोनों मर-मर के भी जिए जा रहे।

गुनाह है गर मुहब्बत, इश्क़ मेरी तो इबादत है,
सरेआम क्यूँ मेरे नाम के सिक्के उछाले जा रहे।

तन्हाई में मेरी तुम्हें याद अक्सर जब भी सताएगी,
मेरे खातिर तुम भी कभी बेसबर हो ही जाओगी।

ख़ामोश लब,ख़ामोश निगाहें तेरी देखी नहीं जाती मुझे,
यकीनन  दिन-रात यहीं घुटन मुझे तो खाए जा रही।।

इक उम्र गुज़ार दी यूँ ही मैंने तिरी तस्वीर देख-देखकर,
तय करना है सफ़र साथ-साथ,क्यूँ मुझे सताए जा रही।

अपनी ग़ज़ल इस दुनिया के हवाले करके हम चले जाएँगें,
मंदिर में मेरे नाम की तुम भी फूल क्यूँ चढ़ाए जा रही।।

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