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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

कविता:-- भूख


पटाखों की दुकां पे बच्चे को रोते देखा,
चंद पैसे उसके हाथों में उसे गिनते देखा,

लाचारी है ,गरीबी है ,या बेवसी का आलम,
भूख की मार में गलियों में कबाड़ी चुनते देखा।

एक ग़रीब बच्चों के आँखों में आज ख़ुद,
उसके मकां में दीपावली को मरते देखा,

थी चाह उसकी दीवाली में नए कपड़े पहनने की,
फूट-पाथ पे चाय की दुकां में बर्तन धोते देखा।

पूछा उसे जब मैंने-- क्या चाहिए बच्चे तुम्हें?
मेरी आँखों में देखकर कुछ नहीं कहते देखा।

हर आदमी करते हैं सदा गमों की नुमाइश,
उसे आँखों में खुद मैंने गमों को पीते देखा।

चुनते हैं अक्सर बच्चे प्लेटफाँर्म पे कुड़े-कचड़े,
पटाखे के लिए दीवाली में घर पे उसे रोते देखा।

जिंदा है हम सब इंसा,फिर भी यहाँ खूब शान से,
उसकी मासूम आँख में आज दीवाली मरते देखा।

करते हैं तो नेता रोज़ इस देश में बड़े-बड़े वादे,
तो फिर क्यूँ रोज़ उसे ग़रीबी का मज़ाक उड़ाते देखा।।

कहते हैं यूँ तो दीवाली खुशियों का है त्योहार,
तो फिर क्यूँ उसे ग़रीबी की भट्टी में जलते देखा।

✍️✍️✍️ Gaurav

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