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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

ग़ज़ल:--- सफ़र ।।।कवि गौरव झा

सफ़र में जहाँ तुझे राहों में काँटे मिलेंगे,
देखना तुम वहीं शायद हम तुम्हें बैठे मिलेंगे,

बसा लिया हूँ इस जलते आँखों में समंदर,
इस शहर के दरिया मिरी पास भटकते मिलेंगे,

ज़ुल्म गर बढ़ेगी इस धरा पे जब-जब भी
कतरा-कतरा खून से सींच दूँगा इस शहर को,

फुर्सत जब मिलें तुझे कभी मिरी आँखों में झाँकना,
धधकते आँखों में तुझे ये पूरा ज़माना मिलेगा।

सुना है परिंदे रोज यहाँ उड़ते हैं ज़माने में बहुत,
इस ज़मीं पे हमीं जो सबका हिसाब लिखते हैं।

क्यूँ पूछते हो तुम मेरे बारे में इस गुमनाम अंधेरों से,
ये वही दर पे लोग हैं जो मुझे बेहिसाब चाहते हैं।

ख़ुद सीख रखा हूँ हुनर चलना हमेशा जलते अंगारों पे,
राहों के तूफ़ान मेरा नाम लिखते आजकल दीवारों पे।

गौरव सफ़र में  राहों में जहाँ कहीं तुझे काँटें मिलेंगे,
देखना तुम वहीं पर शायद हम तुम्हें  बैठे मिलेंगे।।


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