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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

कल्पनाओं की एक अलग दुनिया

   

   

GAURAV JHA

( Writer, Journalist, columnist)

कल्पना का क्षेत्र हर दुनिया से विशाल है,बड़ी है।इस सृष्टि का जब से निर्माण हुआ है तब से लेकर अभी तक कितने ऐसे मर्मज्ञ मनीषी,विद्वान,चिंतक और दार्शनिक हुए हैं जिन्होंने अपने सुक्ष्म ज्ञान, अनुभव, मनन-चिंतन और कल्पना के आधार पर समाज को सतत् सही दिशा की ओर बढ़ने हेतु प्रोत्साहित किया है सही मार्ग दिखाया है।यह हम कह सकते हैं कि वास्तव में कल्पना की दुनिया का कोई सीमित क्षेत्र नहीं है,इसका विस्तार विश्व में विशाल है जिसकी गति को न तो जाना जा सकता है और न ही दुनिया के किसी भी यंत्र के द्वारा एक निश्चित पैमाने को ज़हन में रखकर मापा जा सकता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में परस्पर लोगों के साथ मिल-जुलकर रहना, जीवन-यापन करता है।वह समाज में रहकर समाज के अंदर पल रहे अच्छाईयों और बुराईयों से अवगत होता है। धीरे-धीरे अपने ज्ञान,कला-कौशल और अनुभवों के आधार पर वह जीवन के मूल कर्त्तव्यों, सिद्धांतों से अवगत होता है,उसे समझता है।जीवन के विभिन्न आयामों, पहलुओं को अपने बुद्धिमता अनुसार समझता है और कहीं न कहीं  कल्पना ही मुख्य रूप से हर चीज़ों का सार है या चीज़ों, विषय-वस्तुओं, तथ्यों को गहराई से समझने का यह एक मार्ग है लेकिन यह अत्यधिक कठिन है।कल्पना का अंग्रेजी में मतलब होता है 'विज्युलाइजेशन' इसका मतलब होता है 'मनोचित्रण'।मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि भले आपको विज्युलाइजेशन अथवा कल्पना शब्द नया लगे। लेकिन कहीं न कहीं यह शब्द आपके जीवन से परस्पर जुड़ा हुआ हो।आप अपने रोज़मर्रा ज़िंदगी में इससे वाक़िफ होंगे, परिचित होंगे।यह एक ऐसा विषय है जिससे आप सब परिचित हैं, अनभिज्ञ नहीं हैं। इसलिए यहाँ इस विषय को लेकर जिक्र कर रहा हूँ।समस्त सृष्टि में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो कल्पना ना करता हो, दैनिक जीवन में कुछ अनुभव ना करता हो।कल्पना को वास्तविक जीवन से कहीं न कहीं भिन्न पहलु है। कल्पनाओं की दुनिया से आप अंजान नहीं हैं।आप प्रतिदिन अपने जीवन में विज्युलाइजेशन करते हैं।जो बच्चा जो इस धरती पर जन्म लेता है और धीरे-धीरे उसकी उम्र बढ़ती जाती है।उसके साथ-साथ समयानुसार उम्र के साथ-साथ उसके बुद्धि में भी परिवर्तन होता है और वह अपनी बुद्धि के अनुसार चीज़ों को समझने लगता है, अनुभव के आधार पर समाज को समझने लगता है तो कहीं न कहीं इसमें विज्युलाइजेशन का एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है।आप प्रतिदिन दैनिक जीवन में विज्युलाइजेशन करते हैं और बचपना अवस्था से करते आये हो।विज्युलाइजेशन अर्थात् कल्पना, कल्पना अर्थात् मनोचित्रण करना।दर असल किसी भी घटना, कहानी, आपबीती का अपने अंतर्रात्मा से मन में एक चित्र बनाना, तैयार करना विज्युलाइजेशन करना है।मनोचित्रण को ही हम कल्पना के नाम से जानते हैं। कल्पना को मूल रूप से वास्तविक जीवन से तुलना करना कदाचित् उचित नहीं है और अगर हम इसका वास्तविक जीवन से तुलना तभी कर सकते हैं जब हम सीखने के उद्देश्य से मानकर चल रहें हैं। कुछ कार्य को पूरा करने के उद्देश्य से कर रहें हैं तो कल्पना की महत्ता अत्यधिक होती है।हम कह सकते हैं कि दैनिक जीवन में जो लोग जीवन-यापन करते हैं, कुछ अलग जानने के इच्छुक हैं।वह चीज़ों, विषयों को किताबों के अध्ययन करने के साथ-साथ कल्पना अथवा विज्युलाइजेशन के माध्यम से बेहतर तरीके से जान सकते हैं,बड़ी बारीकी से चीज़ों को आसानीपूर्वक समझ सकते हैं।हम जानने का प्रयास करते हैं कि अधिकतर कैसे लोग कल्पना अथवा मनोचित्रण करते है?आओ जानने का मुख्य रूप से प्रयास करते हैं।

(।) चित्रकार :-- कल्पना अथवा मनो चित्रण या विज्युलाइजेशन करना चित्रकारों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है।यह एक अभिन्न अंग है। जैसा कि हम सब जानते हैं। एक चित्र का बनाने वाले कलाकार के लिए विज्युलाइजेशन का उतना ही अत्यधिक महत्व है जितना कि एक मिठाई में चीनी का महत्व है।जब चित्रकार कोई भी चित्र  अपने हाथों से कागज़ों पर पेंसिल से बनाता है या चित्र बनाता है।वह उसे पहले अपने मन में वैसा ही चित्र का चित्रण करता है,कल्पना करता है।मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि  चित्र बनाने से पहले वो अपने बुद्धिमता,कल्पना और अपने अनुभव के आधार पर वह अपने मन में वैसा ही चित्र बनाता है,रचता है। कैनवास पर एक कलाकार,चित्रकार के द्वारा जो भी रंगों से अभिव्यक्त होती है वह पहले वह अपने अंतर्रात्मा से अपने मन में व्यक्त हो जाती है। तीक्ष्ण बुद्धि और अनुभव के आधार पर  जो भी चित्र वह अपने मन में तैयार करता है,कलात्मक तरीके से रचता है, बनाता है।वहीं मनोचित्रण है।मुख्यतौर पर वही विज्युलाइजेशन है। मैं अपनी विज्युलाइजेशन पर लिखी पंक्तियों के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ जिससे आप सरल और सहज तरीके से विज्युलाइजेशन के बारे में समझ सकते हैं:---------------------------------------------------------
" कल्पनाओं की एक अलग दुनिया होती है, समस्त दुनिया के अध्ययन और ज्ञान प्राप्त करने का यह एक रास्ता होती है यह रास्ता बहुत सुक्ष्म होता है।यह रास्ता सीधे अनंत की ओर जाती है!!"

"Imagination is the different world.It is way to study and gain knowledge of the whole world.this path is very simple.this path directly leads to infinity."

कल्पनाओं के बिना एक मनुष्य का जीवन अधूरा है।हम दिनचर्या जीवन में जो भी छोटे अथवा बड़े कार्य करते हैं।हर प्रकार के कार्यों में कल्पना निहित है।

(2)शिल्पकार:-- चाहे चित्रकार हो, शिल्पकार हो या कोई भी कलात्मक क्षेत्रों से ताल्लुकात रखता हो।हर कलाकार के जीवन में मनोचित्रण अथवा विज्युलाइजेशन का उतना ही महत्व है जितना कि एक आम मनुष्यों के जीवन में महत्व है।अगर हम एक शिल्पकार पर चर्चा करते हैं तो वह सबसे पहले उबड़-खाबड़, टेढ़े-मेढ़े आकार वाले पत्थर पर बड़ी बारीकी से नज़र डालता है तो वह उसके आंतरिक मन में वह एक मूर्ति का स्वरूप निर्माण करता है या हम कह सकते हैं कि वह एक मूर्ति का चित्र अपने अनुभवों,तीक्ष्ण बुद्धि के अनुसार अपने मन में तैयार करता है, निर्माण करता है, बनाता है,रचता है।उसी के अनुसार वह अपने हाथों से कलात्मक तरीके से मूर्त्ति बनाने का प्रयास करता है और वह धीरे-धीरे अंत में यही पत्थर एक अद्भूत शिल्प के रूप में सामने आता है।पत्थर अथवा मिट्टी से निर्मित की गयी मूर्त्तियों में हाथ,पैर,आँख,कान,मुँह और सिर का निर्माण करता है।उस शरीर में लालित्य होता है। उसमें लावण्य होता है। एक मूर्ति के अंदर एक प्यारी सी मुस्कान होती है जो बड़ी बारीकी से देखा जा सकता है जो एक कलाकार की कलात्मक तरीके से निर्माण की गयी अद्भूत कला होती है जो वह अपने अनुभवों और अपने मन में किए गए मनोचित्रण के द्वारा निर्मित करता है। अतः एक शिल्पकार के द्वारा अपने ज्ञान, अनुभवों और कल्पनाओं के आधार पर एक सुंदर मूर्ति का निर्माण करता है,मन में कलात्मक तरीके से मूर्ति रचने की प्रक्रिया को मनोचित्रण अथवा विज्युलाइजेशन के नाम से हम जानते हैं।

3)कवि/लेखक :-- एक कवि और एक लेखक के लिए भी विज्युलाइजेशन से अत्यधिक महत्व होता है।यह एक कवि अथवा रचनाकारों के जीवन का अभिन्न हिस्सा है।यह एक अभिन्न अंग है।हम कह सकते हैं कि एक रचनाकार के पास अगर कल्पनाशक्ति न हो तो क्या होगा?इसके लिए हमें इस विषय को गहराई से समझना होगा।अगर एक रचनाकार कुछ भी रचना के माध्यम से जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करता है। कुछ नया सृजन करता है तो वह पहले अपने मन में वह नए-नए शब्दों के माध्यम से वह रचता है।उसके बाद ही कुछ वो नया सृजन करता है।मेरा मानना है कि एक रचनाकार जब भी कोई कविता, कहानी, आलेख,संस्मरण और उपन्यास लिखता है तो पहले वह ख़ुद के लिए लिखता है क्योंकि उसमें सर्वप्रथम उनकी ही अनुभव निहित होती है।जो अभिव्यक्त करने के बाद एक रचनाकारों को आंतरिक सुखों की अनुभूति होती है। उसके बाद वहीं पूरे जनमानस तक पहुंचता है। आमतौर पर हम कह सकते हैं कि एक रचनाकार के द्वारा जो कुछ भी परिस्थितिनुसार जो कुछ भी अपने मन में पहले सृजित होती है।उसे हम सृजनात्मक कल्पना अथवा विज्युलाइजेशन के नाम से हम जानते हैं।

            हर एक मनुष्यों के जीवन में यह बहुत नज़दीकी से जुड़ा हुआ है जिसे हम आमतौर पर महसूस कर सकते हैं,जान सकते हैं।किसी भी व्यक्ति को नकरात्मक सोचना अथवा बातें करना अच्छा नहीं लगता है।किंतु इसके बावजूद भी यह हो जाता है।अनजाने में ही सही।हम सब कभी-कभार अनजाने में भी कल्पना करते हैं।क्या आपको इसकी जानकारी है?आईए हम जानने का प्रयास करते हैं कि हम कैसे जाने-अनजाने में भी मनोचित्रण अथवा कल्पना करते हैं।

जैसे कि कोई मित्र अफ्रीका,कनाडा,रूस आदि जगहों से घूम कर आते हैं तो वह वहाँ के माहौल,परिवेश, खान-पान, रहन-सहन और लोगों के जीवन से संबंधित कुछ बात करते हैं,वर्णन करते हैं तब आपकी आँखें अपने मित्र को देखती रहती है।मन में इन जगहों का चित्र उभर आता है और नतीजा यह होता है कि हम उस जगह के बारे में सोचने लगते हैं,मन में तरह-तरह की कल्पना करने लगते हैं।यही मुख्य रूप से अंजाने में की गयी मनोचित्रण अथवा विज्युलाइजेशन है।ऐसे समय में ऐसा लगता है कि हम स्वयं इन देशों में घूम रहे हैं,भ्रमण कर रहें हैं।जब कोई भी मेरा मित्र किसी भी घटना का ज़िक्र हमारे समक्ष कर रहा होता है तो उस वक्त हमारे मन में भी उस घटनाक्रम का चित्र उभर जाता है। हम प्राय: अपने जीवन से इसकी तुलना करने लगते हैं।यह अनजाने में होने वाला मनोचित्रण है।हम यूँ समझ सकते हैं कि जब भी कोई व्यक्ति किसी कहानी अथवा घटनाक्रम का वर्णन हमारे समक्ष करता है तो हम आमतौर उसकी संवेदनाओं, भावनाओं से परस्पर जुड़ जाते हैं।अंत में परिणाम यह होता है कि सुनने वाला व्यक्ति भी उस घटना से काल्पनिक रूप में जुड़ जाता है। कुछ मेरे द्वारा मनन-चिंतन की गयी पंक्तियों के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ.....................

"सृजनात्मकता व्यक्ति के अंदर की वह योग्यता है जो जीवन को समझने,जानने और समस्याओं का समाधान ढूंढने का सही दिशा प्रदान करता है। किसी भी विषय, वस्तुओं और नए विचारों का उत्पादन करता है जो वह पहले से नहीं जानता हो।यह मनुष्यों के अंदर इच्छाशक्ति को जागृत करने की प्रक्रिया है जो हमेशा मनोचित्रण अथवा विज्युलाइजेशन से ही संभव है!!"

"Creativity is the ability within a person to provide the right direction to understand life, to know and to find solutions to problems. Produces any subjects, objects and new ideas that he does not already know. There is a process of awakening the will inside which is always possible only through visualization or visualization !! "

कल्पना या विज्युलाइजेशन एक ब्रह्मास्त्र का नाम है।यह एक महाशक्ति का नाम है।यह हम कह सकते हैं कि संसार में जो मनुष्य कल्पना करता है।जो कल्पनाशील है वहीं व्यक्ति सबसे ज़्यादा स्वस्थ है,खुशहाल हैं।एक कल्पनावान् व्यक्ति हर प्रकार के कार्यों को आसानीपूर्वक करता है।

"समस्त सृष्टि ही कल्पना के आधार स्तंभ पर टिकी है!!"

विज्युलाइजेशन अर्थात् मनो चित्रण पर कहीं न कहीं आमतौर पर वातावरण पर भी गहरा असर पड़ता है।हम दो प्रकार की बातों का ज़िक्र यहाँ पर कर रहा हूँ जिससे आप आसानीपूर्वक समझ सकते हैं कि कहीं न कहीं वातावरण पर गहरा असर पड़ता है।

(१)आंतरिक वातावरण

(२)बाह्य वातावरण

(1)आमतौर पर मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि मनोचित्रण करते समय यदि हमारे मन में शांति,आनंद और स्थिरता है तो हम कल्पना अच्छी तरह से हम कर सकते हैं लेकिन अगर हमारा मन किसी विपरित परिस्थितिनुसार मन विचलित है, परेशान है तो विज्युलाइजेशन करने में हरेक प्रकार की बाधाएँ और समस्याएँ उत्पन्न होगी।इसिलिए विषय-वस्तुओं, पहलुओं, वातावरण और प्रकृति के संपर्क में परस्पर जुड़ने से पहले हमें मन को शांत,स्थिर और आनंदित रखना अति आवश्यक है।जब भी हम मनोचित्रण करते हैं तो हम चीज़ों के बारीकियों से आसानीपूर्वक समझ सकते हैं,जान सकते हैं। कुछ पंक्ति के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ जिससे आप अधिक बेहतर तरीके से इन विषयों को बड़ी बारीकी से समझ सकते हैं।वास्तव में, आखिर क्या है यह विज्युलाइजेशन?

"एक कल्पनाशील व्यक्ति बनें। एक व्यक्ति के पास जितना ज्ञान और बुद्धि नहीं होती है। मस्तिष्क कार्य नहीं करती है। उतना एक कल्पनाशील व्यक्ति का मस्तिष्क बड़ी तीव्र गति से हर प्रकार के कार्यों को करने की क्षमता होती है। इससे हमारा मस्तिष्क का विकास ही नहीं होता बल्कि बुद्धि भी तीक्ष्ण होती है। एक कल्पनाशील व्यक्ति ही चीज़ों, विषय-वस्तुओं को अत्यधिक गहराई में समझ सकता है।विज्युलाइजेशन एक ब्रह्मास्त्र का नाम है!!"

"Be an imaginative person. A person does not have as much knowledge and intelligence. The brain does not work. The brain of an imaginative person has the ability to do all kinds of tasks at great speed. This helps our brain develop. Not only is there intelligence but also sharpness. Only an imaginative person can understand things, subjects and things in extreme depth. Imagination is the name of Brahmastra!! "

(2) बाह्य वातावरण:-- हम सबको जिस वातावरण में रहने की हमें आदत होती है जैसा कि हम सब जानते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है जो हमेशा समाज में रहना पसंद करता है।जिस परिवेश में वह रहता है उस परिवेश में रहकर वह वातावरण,प्रकृति और आस-पास के परिवेश में रहकर वह बेहतर और सुसज्जित तरीके से हर चीज़ों का विज्युलाइज कर सकता है। लेकिन इसमें भी सीखना सबसे पहली प्राथमिकता होनी चाहिए जो मनोचित्रण से ही मुख्यत: संभव है।क्योंकि हमारे मन में रोज़ ख्याल या भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रश्न मस्तिष्क में आते होंगे।इस पर कभी क्या आप मनन-चिंतन करते हैं?क्या आप सोचते हैं?क्या आप जानने का प्रयास करते हैं कि विज्युलाइजेशन या मनोचित्रण करना एक मनुष्य के लिए क्यों अत्यधिक ज़रूरी है जो मेरे द्वारा लिखी पंक्तियों के माध्यम से समझाने का प्रयास करता हूँ.................................................................

"एक मनुष्य के जीने का आधार ही सीखना है!!"

The basis of a human's life is to learn.

बाह्य वातावरण कहने का हमारा मूलतः तात्पर्य यह है कि एक कल्पनाशील मनुष्यों के लिए एक उचित माहौल अनुकूल होना अत्यधिक आवश्यक है।अत्यधिक ठंड और अधिक गर्मी दोनों स्थिति में मन को एकाग्र करने में समस्याएँ उत्पन्न हो सकती है।अतः एक मनुष्य को चाहिए कि जैसा उसे अपने माहौल हिसाब से अनुकुल लगें वैसे वातावरण में मुख्यतौर पर विज्युलाइजेशन करें।जब भी आप विज्युलाइजेशन या मनोचित्रण करेंगें तो सबसे पहले आपको विश्व के सभी प्राणियों के लिए शुभ और सकरात्मक दृष्टिकोण को ज़हन में रखकर करोगे तो वह ख़ुद के साथ-साथ सबके लिए अत्यधिक लाभकारी होगा। दोस्तों,मनोचित्रण एक ऐसी शक्ति का नाम है जो आपकी इच्छाओं को हकीकत में बदलने की क्षमता रखता है।

          हम यदि सहज और सरल ज़िंदगी जीते है,तो अपनी इच्छाएँ भी सहज रूप से पूर्ण हो जाती है प्रकृति के संपर्क में रहकर मनोचित्रण करना अत्यधिक लाभकारी होता है।जो एक मनुष्य के जीवन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।प्रकृति की प्रत्येक क्रिया स्वाभाविक या सहज होती है। वाकई हम कह सकते हैं कि प्रकृति जीवन दायिनी होती है।प्रकृति के संपर्क में रहकर हम बारीकी से आस-पास के परिवेश, वातावरण को सहज तरीके से समझ सकते हैं,जान सकते हैं।

"प्रकृति हमसे कुछ नहीं माँगती है यह सिर्फ़ हमें बिना माँगे देती है।बदले में कुछ नहीं माँगती है।प्रकृति के संपर्क में रहना ही बेहतर तरीके से प्रकृति को जानना है!!"

"Nature does not ask for anything from us, it just gives us nothing. In return, nothing is asked for. Getting in touch with nature is to know nature better."

अतः हम जान सकते हैं कि प्रकृति के संपर्क में रहने से क्या-क्या लाभ हैं? इसके संपर्क में रहने के साथ उसी अनुरूप होकर और प्रकृति के साथ एलाइनमेंट कर जिओगे तो मनोचित्रण के इच्छित परिणाम सहज रूप से मिलेंगे।

जब तक कल्पना है तो जीवन है,यह नहीं तो मनुष्य रूपी जीवन अधूरा है या नीरस है।




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