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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

कविता:-- माँ सरस्वती

हे माँ सरस्वती मुझे तु ही ज्ञान दो,
हो सकल मनोरथ,मुझे वरदान दो,
हे माँ सरस्वती मुझे तू ही मान दो,

माँ शारदे!तू है जग में हँसवाहिनी,
वागीश! वीणावादनी,तू है मातेश्वरी,
हे माँ सरस्वती तू ही मुझे ज्ञान दें,

पथ में कभी भटकूं,तू ही मुझे राह दें,
तू ही है जगदम्बे,तू ही है काली,
हे माँ सरस्वती तू ही मुझे मान दें।

ज्ञान का दीप रहूँ फैलाता इस जग में,
हे माँ शारदे!यह तू  मुझे वरदान दें।

चलूँ नेक राह पे,दिखा तू पथ माँ भारती,
नित्य उतारूँ अपने मन से तुम्हारी आरती।।

लालशा नहीं कुछ, सुख-समृद्धि और केवल ज्ञान दें,
हे माँ मातेश्वरी!वीणावादिनी तू मुझे वरदान दें।।

मन-बुद्धि , विवेक हो मेरा चंचल ,
अपने निज हाथों से करूँ न अमंगल,
हे कल्याणी!सदा  हृदय मेरा पवित्र हो,
रहूँ  सबके दिलों में,तू ऐसा मुझे चरित्र दें।

पथ में माँ तू हमेशा ही मेरे साथ दें,
चहूँ ओर ज्ञान फैलाता रहूँ,मुझे तू प्रकाश दें,
हे माँ शारदे !तू ही मुझे केवल ज्ञान दे,
तेरे चरणों की धूल लगाऊं हमेशा,
नित्य अपने चरणों में मुझे स्थान दें।

वीणावादिनी,तू है हँसवाहिनी,
है माँ शारदे!विश्व मेरा परिवार हो,
छल-कपट से हमेशा दूर रहूँ,
सबके दिलों में हमेशा तू प्यार दें।
हे वीणावादिनी,तू मुझे ज्ञान दें,
नित्य निर्मल हृदय से करता रहूँ सदा पूजा
हे माँ शारदे!वीणावादिनी!तू मुझे वरदान दें।

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