b:include data='blog' name='all-head-content'/> Skip to main content

Featured

हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

गजल:-- एकता में बल

बाँट रहे हो मुल्क को क्या,नहीं है तुम्हें कुछ भी ज्ञात,
मत बाँटों हिंदू-मुस्लिम को,क्यूँ पूछ रहे तो तुम जात।

ईश्वर,अल्लाह, ख़ुदा एक ही हैं,यही है असल कहानी,
नफ़रत फैलाते रहो आपस में तुम ऐसे बेकार है जवानी।

यह मुल्क है बलिदानों की,हिंद की यही एक कहानी है,
हिंदू-मुस्लिम,सिख-ईसाई एक हैं,मिलकर हिंदुस्तानी हैं।

गुनाह करते हो सरेआम,इसका तुम्हें कुछ भी नहीं है भान
भ्रष्ट होकर लुटते हो देश को तुम,इसका नहीं है तुम्हें ज्ञान।

सेंक रहे राजनीति के दम पे हैं रोटी,यहीं है इनका एजेंडा,
आम जनता मरती रहे दम घुट-घुटकर यही है इनका फंडा।

राजनीति के मठाधीश कहाँ ले जाएँगे देश को,नहीं है ज्ञान,
वोट से पहले हर घर में पहुंचते,करते हैं सभी को प्रणाम।

दम तोड़ रही इनकी झूठे नारेबाज़ी,हैं यह सदा से बदनाम
विकास के नाम पे भोली जनता को  करते हैं ये गुमनाम।।

मुल्क में जो पत्थर बाज है,नहीं है जिसे अपने देश से लगाव,
गद्दारों और देशद्रोही के कुचल दो फन,इसको नहीं बचाओ।

बाँटते हैं इंसानों को जाति  में ,राजनीति का ये है पुराना दाँव,
मत फैलाओ पंख इतना,खींच सकती है जनता तुम्हारे पाँव।।

Comments