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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

जीवन है एक पूल जैसा

यह जीवन है एक पुल जैसा
पुल जोड़ती तो है,
मनुष्यों को दो एकता
के महीन धागों में,
वह पुल जो नदी पर
बनी होती है,दिखने
में स्थिर होती है,
लेकिन पथिकों, मुसाफिरों
का बोझ भी वही सहती है,
यह पुल जोड़ती है हमेशा
दो रास्ते के बीच की खाईयों
को हमेशा अपने बंधन से,
यह जीवन है एक पुल जैसा,
अनगिनत यात्री का इस पुल
पर आवागमन होता है,
यह पुल है न तो कभी
थकती है,न कभी ये
विश्राम ही करती है,
क़रीब से जब देखता हूँ,
पूल को तब समझता हूँ कि,
यह कितनों का बोझ सहन
करती है,बोझ उठाती है,
फिर भी स्थिर रहती है,
चुपचाप शांत रहती है,
यह जीवन है एक पुल जैसा,
मनुष्य का जीवन भी है,
एक लंबा पुल जैसा,
जिस पर कितने आदमी
हैं, ज़िंदगी में मिलते हैं,
फिर बिछड़ते हैं,
रह जाती हैं बस सबकी यादें,
और कुछ खास बातें
ज़िंदगी है सतत् चलते
रहने का हमेशा,
गुजरता हूँ जब भी किसी
बनी हुई पूल के ऊपर से,
देखता हूँ छोटे-छोटे बच्चे
को कुछ हाथों में लेकर
आस-पास चल रहे पथिक
को ज़ोर-ज़ोर से उच्च आवाज़ में,
पुकारते हुए,चिल्लाते हुए
उस बच्चे की ज़िंदगी को
देखता हूँ तो कभी सोचता हूँ
कि इसकी ज़िंदगी पूल पर
ही टिकी है, हाथों में कुछ
सामान बेचते हुए........
उलझ जाता हूं उसके सवालों
में कभी-कभी ,
इसलिए जीवन है एक पुल जैसा,

याद आती है हमेशा,जब सफ़र

ट्रेन में अक्सर होता है,

रेल अपनी रफ़्तार से

सतत् बढ़ती जाती है,

उस वक्त सहसा किसी पुल

पर रेल को गुजरते देखता हूँ,

पुल थरथराने,हिलने लगती है,

फिर भी वह अनगिनत यात्री का

बोझ अपने ऊपर उठाती है,

वह पूरे भार और बोझ को

वह सब कुछ सहन करती है,

फिर भी यह स्थिर और शांत रहती है,

उसकी आवाज़ को ग़ौर से,

सुना तो पाया कि यह 

आवाज़ कितनों के नींद

छीन लेती हैं,जगा देती है सबको,

ट्रेन के सफ़र में सिर्फ़ आदमी

को कुछ लम्हें याद रहते हैं

तो किसी पूल की,जो ट्रेन गुजरती है,

पुल के साथ हर मनुष्य का कुछ

पुराना रिश्ता है,

यह पुल साथ नहीं

कभी छोड़ती जन्म से लेकर आदमी की मृत्यु तक

 ट्रेन के सफ़र में पुल

और कुछ आस-पास बैठे मुसाफिरों

के साथ बिताए पल और कुछ

खट्टी-मीठी बातें और सिर्फ़ चहरे,

सदा ही याद रहते हैं,

यह जीवन है एक पुल जैसा।।











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