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Gaurav Jha is a signature of Kalam who is a litterateur as well as a skilled speaker, leader, stage operator and journalist. His poems, articles, memoirs, story are being published in many newspapers and magazines all over the country. At a very young age, on the basis of his authorship, quality,ability.he has made his different fame and his identity quite different in the country. They have a different identity across the country.
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कविता:-- पेड़
मैं पेड़ हूँ,मुझको काँटो ना,
हूँ मैं सबका रखवाला,
जानते नहीं तुम फल खाकर
बहुत बनते हिम्मत वाला,
सचमुच मैं तुम्हारा प्राण हूँ,
ज़िंदगी है तुम सबकी पलती,
इसी के छाँव में, मैं भी पथिक हूँ,
तुम सब भी पथिक हो,
काटो मत मुझे,मैं तुम्हारा रक्षक हूँ,
कंद-मूल,फल फूल तुम्हें देता हूँ,
तुम तो मानव,हो रहे बड़े स्वार्थी,
दिन-प्रतिदिन विकास का ढोंग रचाके
तुम मेरे शरीर को ही काटते हो।
मैं हूँ पेड़,ज़रा मेरा अस्तित्व तुम बचाओ,
विकास चाहते हो गर समाज का तुम तो,
बेफ्रिक होकर समाज हित का काम करो,
लेकिन मैं पेड़ हूँ,एक काटो तो चार लगाओ।
हैं सुरक्षित मुझसे ही ये जगवासी,
आँक्सीजन तुमको हमेशा देता हूँ,
बदले में तुमसे कुछ मैं नहीं लेता हूँ,
मैं पेड़ हूँ,तुम सबका हूँ मैं जीवन दाता,
हे मानव!चेत जाओं ज़रा मुझसे तुम,
मैं हूँ पेड़ ,मुझको तुम मत काटो।
मुझसे ही तुम सबकी जीवन टिकी है,
ये मत भूलों, ऐसे धरा पर तुम मुझे काटोगे,
इक दिन धरती पर सब कुछ मिटता नज़र आएगा,
तुम्हारा जीवन का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा।
मैं हूँ पेड़ , मुझको तुम मत काटो,
ऐसे ही अगर मुझे दिन-प्रतिदिन काटोगे,
हे मानव!धीरे-धीरे सब धरा से नष्ट हो जाएगा,
तब-तब इस धरती पर रोज़ बरसेगा कहर,
तुम सभी के जीवन में रोज़ नया कष्ट आएगा।
काटने से पेड़-पौधों को दिन-प्रतिदिन,
पता है क्या?बढ़ रहा है पर्यावरण का तापमान,
मैं हूँ पेड़, सभी का जीवनदायिनी हूँ,
क्षतिग्रस्त और दोहन करके जंगलों को ,
बना रहे हो निजी स्वार्थ में अपने-अपने मकान!
मैं हूँ पेड़,जानता हूँ इस धरा पे कहीं सूखे की मार,
तो कहीं जहरीली हवाओं से जन-जन रहते बीमार।
तालाबों और नदियों के पानी आजकल सूख रहे,
इंसान निजी स्वार्थ,झूठी आन-बान-शान में है लाचार।
मैं हूँ पेड़ , मुझे तुम मत काटो,
कौन बचाए पेड़-पौधों को इस धरती से,होने से वीरान,
मानव आज निजी स्वार्थ में फँसकर बना हुआ है शैतान।
इस आधुनिक युग में,अभी भी अगर हम नहीं संभले,
इक दिन पेड़-पौधों के बिना ये धरती बन जाएगी श्मसान।
पेड़-पौधे ही हैं,जो हम सबको सदा देते हैं सुंदर छांव, काटकर,दोहन करके इसको मत दिया करो इसे घांव
तुम हो मानव! आख़िर कभी क्यूँ नहीं सोचते तुम,
नहीं जानते क्या?पेड़ों के भी होते हैं अपने कुछ भाव!
सदा से ही पेड़-पौधों से औषधि,गंध-मूल मिलते हैं,
ऋषि-मुनियों ने भी पेड़-पौधों की छाया में किया तप,
यह उपवन के सुंदर पेड़-पौधे ही प्रकृति के शान हैं,
लाख छुपाओं कमियाँ,बचे धरती पर इनसे हर इंसान हैं।
मैं हूँ पेड़,रोक लो तुम मुझे हर-दिन कटने से तुम,
हे मानव!अंदर तुम्हारे बचा अगर ज़रा सा भी ज्ञान हो।
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