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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

आलेख :-- मनुष्य की वेदनाओं की अभिव्यक्ति होती है कविता।


     GAURAV JHA

(Writer, Journalist, columnist)

कविता शब्द नहीं है,कविता अर्थ नहीं है,कविता वह अनुभूति भी नहीं,कविता वह रीति नीति भी नहीं जिस बंधन और तुकांत में कविता दिखती है। कविता काष्ठ की अग्नि है,कविता ऋषि के ध्यान में उतरी ध्वनि है,कविता किसी संवेदना का उन्मुक्त प्रवाह हो,हो सकता है वो कोई आग हो,कविता गंधर्व की राग हो,हो सकता है बेआवाज हो।कविता एक कवि की अंतरवेदना है।साहित्यकार के जीवन में जो दुख,खुशी घटित होती है।जो समाज में रहकर अनुभव करते है।और हृदय से निकली आवाज,व्यथा का नाम ही कविता है।कविता कवि के शरीर की आत्मा होती है।
      किंतु वेद जैसे अपौरुषेय कहे गए हैं कविकुलगुरु जिसे अनायास, अनपेक्षित-अनिश्चित,अलक्ष्य कह गए हैं, शायद उसे कोई इलहाम कह गया है ,कोई ईश्वरीय आदेश और ज्ञान कह गया है।कविता उतरती है,उतारी जाती है,पूरी तैयारी और छंद ध्वनि राग साधना के साथ।शेर कहे जाते हैं,नाट्य होते जाते हैं,गीत सुरों में,स्वरों में उतारे जाते हैं पूरी नजाकत- नफासत स्वागत के साथ।बस यही कविता की गति है।कविता तुलसी का लोकगीत है,सूर की अंधी वात्सल्य-भक्ति दृष्टि है,मीरा की प्रेम दीवानगी,कबीरा की फकीरी है। दादू नानक की समाज दृष्टि,रैदास की दैन्य भक्ति है।
       कवि के मानस की अटल गहराइयों से कोई ईश्वरीय दृष्टि,कोई अनुभूति,कोई प्रवाह,कोई गंगधार,,,,कुछ भी ,कभी भी उतर सकता है।बस अनुकूल मानस हो, समय हो,स्थिति हो,अध्ययन या सतसंग की पृष्ठमूमि हो।।। "कविता" केवल रसात्मक या कर्णप्रिय अभिव्यक्ति नहीं है बल्कि कविता वह है जो कानों के माध्यम से हृदय को आंदोलित करे। जिस भाव की कविता हो उस भाव को जागृत करने में सक्षम हो। दीन-दुखियों, अनाथों, वंचितों और माँ की पीड़ा को प्रदर्शित करने में सक्षम हो। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने वाली कविता ही वास्तविक कविता होती है। यही उसका सौंदर्य है।कविता तो कवि,साहित्यकारों की दिल की आवाज है।जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर का महत्व नहीं है।उसी प्रकार कविता के बिना कवि का जीवन सुना-सुना सा है।अपनी अंर्तआत्मा में घट रही पल को ही कवि या सृजनकर्ता लेखनी के माध्यम से पन्नों पर उतारते है।कविता एक ऐसी आग है कि बड़े से बड़े चट्टान को क्षण भर में ही नष्ट कर सकती है।कविता को परिभाषित करना आसान नहीं है।मेरे कहने का तात्पर्य कवि की रूह की आवाज होती है "कविता"।

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