Search This Blog
Gaurav Jha is a signature of Kalam who is a litterateur as well as a skilled speaker, leader, stage operator and journalist. His poems, articles, memoirs, story are being published in many newspapers and magazines all over the country. At a very young age, on the basis of his authorship, quality,ability.he has made his different fame and his identity quite different in the country. They have a different identity across the country.
Featured
- Get link
- Other Apps
सफर
सफ़र में अकेले चलता हूँ,
सदा ख़ुद राहों में बढ़ता हूँ,
भीड़ के साथ रहना मिरी
सदा से ही फितरत नहीं,
सफ़र में अकेले चलता हूँ,
जानता हूँ इस ज़िंदगी में
कितने लोग बेवजह आते हैं,
कई पीछे राहों में छूट जाते हैं,
हाँ मैं कोई भीड़ का हिस्सा नहीं,
किसी भी कहानी का किस्सा नहीं,
जो भी हूँ हकीकत में हूँ,
सदा मंज़िल की तलाश में सतत्
ख़ुद बढ़ता सदा जाता हूँ,
आसां नहीं होता है सफ़र में
सतत् अकेले निरंतर आगे बढ़ना,
कुछ सफ़र में तय करने के लिए,
देनी पड़ती है सदा अपनी इच्छाओं
की कुर्बानी,झोंकना पड़ता है ख़ुद को
आग की लपटें और भट्टियों के हवाले,
जीना पड़ता है ख़ुद ज़िंदगी
ये सच है कि ज़िंदगी भी एक खेल है,
निभाना पड़ता है इस जीवन में,
अक्सर कई किरदारों को,
समय कभी भी किसी का रूकता नहीं,
थम जाती है ज़िंदगी कुछ पल,
अनायास,चाहत इंसानों की अंतहीन है,
सफ़र में अकेले बढ़ते जाना है,
इक समय आएगा मिलेंगी किनारा
और मिरी मंज़िल,
यह सच है कि सफ़र का अंत नहीं,
जीवन है क्या? ख़ुद को समझने का दौर है,
जी रहें हैं आदमी इस भूमि पे ज़िंदगी,
असल ज़िंदगी जीने का मज़ा तब है,
जब राहों में उलझने-उलझने ही हो,
तभी तो वास्तव में जीने का मज़ा है,
ज़रूरी नहीं हर सफ़र में सबका साथ हो,
तय करने पड़ते हैं कुछ मंज़िल,
कर्त्तव्य पथ पर निकलने के बाद,
छूट जाते हैं कई रिश्ते-नाते,कई अपने-पराए,
यह जीवन सबका उलझा हुआ है,
सफ़र में अकेले चलना पड़ता है,
चाहत में छुट जाते हैं कई रिश्ते-नाते,
तय करना पड़ता है धैर्य के साथ अपनी मंज़िल,
- Get link
- Other Apps
Popular Posts
कविता -- प्रकृति कुछ कहना चाहती है।
- Get link
- Other Apps
प्रकृति की गोद में खूबसूरत शहर बसा है ग्वालियर // गौरव झा
- Get link
- Other Apps
Comments
Post a Comment