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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

ग़ज़ल

तुम हो परिंदा, तुम्हें उड़ना नहीं आता,
फ़कत इक दिन में मुझे उड़ाना नहीं आता।

शरारत से गुजर कर कुछ नहीं होता है हासिल,
इसलिए तेरे सवाल मुझे समझाना नहीं आता।

नफ़रत की दहकती चिंगारी हैं तेरे अंदर,प्यारे
पूछते हो रोज़ सवाल, तुझे सिखना नहीं आता,

नहीं है ज़िंदगी में कुछ भी तुझे सीखने की चाह,
शायद तुम कहते उसे सही से बताना नहीं आता।

जाते हो तुम समंदर के पास,कुछ उम्मीद लेकर,
नदियों की धार से अपनी बात जताना नहीं आता।

बिखरे पड़े,सुनसान पहाड़ों के बगल में कुछ पत्थर,
कोहिनूर जैसे बेशकीमती पत्थर तुझे उठाना नहीं आता।

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