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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

अभी-अभी धूप उगी है,
काम करने की सबने
अब कुछ मन में ठानी हैं,
सूरज चाचा भी सो गए हैं,
वो अपना होश खो दिए हैं,
वर्षो से सूरज ने बंद कर
लिया है अपना दरवाजा,
क्योंकि भीषण आग की
लपटों में इंसान भुगते न
कभी भी गलत ख़ामियाजा,
सूरज का अंदाज़ गजब है,
वह है आग का गोला,
रहो ज़रा इससे थोड़ा दूर,
अपनी गर्मी से करते
यह सभी को हमेशा मजबूर,
बेचारा सूरज भी मजबूर है,
यह हर इंसानों के पहुँच
से ही बहुत दूर-दूर है,
बंद कर लिया अब सूरज
भी है अपना दरवाजा,
इंसान रोज़-रोज भुगते न
भीषण गर्मी में ख़ामियाजा,
बैठा था सूरज घर के बाहर
माँ ने उसे ख़ुद बड़े प्यार से
बुला लिया और कहा जल्दी से
तू घर के अंदर अब आजा।
ज़ोर-शोर से आसमाँ में
गरज रहे थे  बादल,
नीचे बैठकर रेत की धूल
में लिपट-लिपटकर कुछ
खेल खेल रहे थे बालक।
सूरज को माँ ने कहा
ज़रा इतनी धूप है तो क्या?
मुझे उसके घर तुम जाने दो,
वह छोटे बच्चे जो बैठा है,
खेल रहा है अपने आँगन में,
उसे ज़रा कुछ पाठ पढ़ाने दो।

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