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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

हिंदी कविता : स्यायी / गौरव झा

   GAURAV JHA
( Journalist, writer & Columnist )

अपने एहसासों को स्यायी
से गढ़कर पन्नो पर लिख देता हूँ,
तुम्हारी हो या फिर  मेरी,
अंतर्मन की वेदना को सुना देता हूँ।
एहसास जो है मेरे अंदर छुपे,
जुबां पर उसे ही लाता हूं,
वक्त मिलता जब भी,
वहीं काली स्यायी से लिखी 
जज़्बात तुम्हें सुनाता हूँ।।
अंतर्मन के एहसासों को 
शब्द रूपी मालाओं में पिरोता हूँ,
कुछ लिखे जज़्बात तुम्हें सुनाता हूँ।
अभिलाषा है मेरी भी कुछ
ज़िंदगी में कर गुजरने की,
चल पड़ती है लेखनी सच्चाई 
की ओर,
छोटी-सी है क़लम 
स्यायी के साथ मिलकर
यही बात 'गौरव'दुनिया को 
इसकी ताकत बताता हूँ।
स्यायी कागज़ पर गिरती है,
यह कुछ नया लिखने को कहती है,
लिख लेता हूँ कुछ अंतर्मन के जज़्बात,
काली स्याही से,
अपने एहसासों को स्यायी
से गढ़कर पन्नो पर लिख देता हूँ,
तुम्हारी हो या फिर  मेरी,
अंतर्मन की वेदना को सुना देता हूँ।
चाहे रंग लहू का हो या स्यायी का,
काली स्याही को कागज़ की 
भट्टी में जलाकर लिखते रहे,
लोग वाह-वाह कर-करके
 जज़्बात हमारे हमेशा पढ़ते रहे।।

---@ Gaurav Jha


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