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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा

  GAURAV JHA  ( Journalist, Writer & Columnist ) चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार  गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। सिखता आ रहा हूँ,बहुत कुछ गाँवों में रहता हूँ,हर वकत बुजुर्गो के छाँवों में। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार गाँव की  याद आती है बहुत मेरे यार।। मिलता था माँ का प्यार सदा गाँवों में जन्नत मिला है  सदा  माँ के पाँवों में।। गाँव में  मिलता बहुत लोगों का  प्यार, शहर आते बहुत कुछ खो दिया मेरे यार। चाहे चले जाओ,गर सात समुद्र पार, गाँव की याद आती है बहुत मेरे यार।। #  <script data-ad-client="ca-pub-6937823604682678" async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script>

हिंदी कविता : उड़ान // गौरव झा

  

  GAURAV JHA
(Writer, Journalist & Columnist )

आकाश में जगह
नहीं होती है उड़ने की,
जैसे पक्षी उड़ान भरती
हो खुले नभ में,
चुगती है दिन-दिन
भर दाना
फिर सोचती है वह भी
अपने घोंसले में आना।
मैं उड़ा हूँ,
रूकना मुझे भी नहीं आता,
सफ़र पर अकेला चला हूँ,
हर विपदाओं से मैं बड़ा हूँ
सीखा हूं केवल सतत् चलते जाना,
आकाश में जगह 
नहीं होती है उड़ने की।।
सीखा हूँ मैं भी हुनर केवल
 सतत् चलने की।
मिले राह में चाहे पहाड़
या हो फिर चट्टान
सौ-बार मुझे भी टकराना है,
हर सख्त चट्टान का
सीना चीरकर राह 
ख़ुद नया मुझे बनाना है।।
पक्षियों को  उड़ने
के लिए पंख चाहिए,
मेरा हौंसला ही है
जो मेरी उड़ान है।।
शौक है मुझे भी खुले
आकाश में उड़ने की,
मंज़िल की तलाश में
उसी दिशा में बढ़ने की,
मेरा हौंसला, जज़्बा
कम है क्या?
यही मेरी उड़ान है।
आकाश में जगह नहीं
होती है उड़ने की,
जैसे पक्षी उड़ान भरती
हो खुले नभ में।।

---@Gaurav Jha





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