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Gaurav Jha is a signature of Kalam who is a litterateur as well as a skilled speaker, leader, stage operator and journalist. His poems, articles, memoirs, story are being published in many newspapers and magazines all over the country. At a very young age, on the basis of his authorship, quality,ability.he has made his different fame and his identity quite different in the country. They have a different identity across the country.
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लेख-- जीवन का सत्य
मनुष्य प्रकृति के किसी विशेष भाव का विकास तथा उद्वीपन होने पर उसका प्रभाव अल्पाधिक मात्रा में सभी पर होता है,परन्तु जिस जाति का वह भाव विशेष लक्षण है एवं साधारणत: जिसे केन्द्र बनाकर वह उत्पन्न हुआ है,उसी जाति के अन्तस्तल को वह सबसे अधिक आलोड़ित कर देता है।इसी कारण धर्म जगत में किसी आंदोलन के उपस्थित होने पर उसके फलस्वरूप, भारत में अवश्य ही अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण परिवर्तन प्रकटित होते है।दर असल भारतवर्ष में जिसको केन्द्र बनाकर बारम्बार धर्म की तरंगें उत्थित हुई हैं-- क्योंकि धर्म ही भारत का विशेषत्व है।
प्रत्येक व्यक्ति केवल उसी वस्तु को सत्य समझता है,जो उसके उद्देश्य की पूर्ति में सहायक होती है।सांसारिक भावनापन्न व्यक्तियों के समक्ष वही वस्तु सत्य है जिसके विनिमय में उन्हें अर्थ की प्राप्ति होती है --- और जिसके बदले में उन्हें कुछ लाभ नहीं होता,वह उनके लिए असत्य है।
जिस व्यक्ति की आकांक्षा दूसरों पर प्रभुत्व स्थापित करने की है,उसके लिए तो सत्य हमेशा वही है।जिसके द्वारा उसकी यह आकांक्षा पूरी होती है,और शेष सब उसके लिए निरर्थक है।इसी प्रकार जिस वस्तु में वह व्यक्ति किस प्रकार का सत्य या अर्थ नहीं देख पाता,जिन व्यक्तियों का एकमात्र लक्ष्य अपने जीवन की समस्त शक्तियों के विनिमय में कांचन,नाम,यश या अन्य किसी प्रकार के भोग-विलास का अर्जन करना जानता है,जिसके समक्ष रणभूमिगामी सुसज्जित सेना-दल ही शक्ति के विकास का एकमात्र प्रतीक है,जिसके निकट इन्द्रिय सुख ही जीवन का एकमात्र सुख है,ऐसे लोगों के लिए भारत सर्वदा ही एक बड़े मरूस्थल के समान प्रतीक होगा।जहां की आँधी का इक झोंका ही उनकी कल्पित जीवन -विकास की धारणा के लिए मानो मृत्यु स्वरूप है।
व्यक्तियों को प्रेम तथा सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखते हैं,जिनके संचित पूर्व सत्कर्म के प्रभाव से आंखों के सामने से अग्यान का आवरण लुप्त हो गया है,जिससे वे असार नामरूप को भेदकर प्रकृत सत्य का दर्शन करने में समर्थ हुए हैं।अधिकांश मनुष्य शक्ति को उसी समय शक्ति समझते हैं जब वह उनके अनुभव के योग्य होकर स्थूलाकार में उनके सामने प्रकट हो जाती है।उनकी दृष्टि में समरांगण में तलवारों की झनझनाहट आदि की खूब स्पष्टत: प्रत्यक्ष शक्ति के विकास मालूम होते हैं-- और जो आँधी की भाँति सामने से चीजों को तोड़-मोड़कर उथल-पुथल पैदा न कर देती हो,वह उनकी दृष्टि में शब्दों का विकास नहीं है-- वह मानो जीवन का परिचायक न होकर मृत्यु स्वरूप है।
इसीलिए शताब्दियों से विदेशियों द्वारा शासित एवं निश्रेष्ट,एकताहीन एवं देशभक्तिशून्य भारतवर्ष उनके निकट ऐसा प्रतीत होता होगा मानो वह गलित अस्थिचर्मो से ढ़की हुई भूमि मात्र हो।भारतवर्ष का इतिहास पढ़ने वाला प्रत्येक विचारशील पाठक यह जानता है कि भारत के सामाजिक विधान प्रत्येक युग के साथ परिवर्तित हुए हैं.....।
------- आपका कलमकार गौरव झा
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हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा
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Nice
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