Search This Blog
Gaurav Jha is a signature of Kalam who is a litterateur as well as a skilled speaker, leader, stage operator and journalist. His poems, articles, memoirs, story are being published in many newspapers and magazines all over the country. At a very young age, on the basis of his authorship, quality,ability.he has made his different fame and his identity quite different in the country. They have a different identity across the country.
Featured
- Get link
- X
- Other Apps
लेख -- साहित्य समाज का दर्पण
साहित्य समाज का दर्पण है । एक साहित्यकार समाज की वास्तविक तस्वीर को सदैव अपने साहित्य में उतारता रहा है । मानव जीवन समाज का ही एक अंग है ।
मनुष्य परस्पर मिलकर समाज की रचना करते हैं । इस प्रकार समाज और मानव जीवन का संबंध भी अभिन्न है । समाज और जीवन दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं । आदिकाल के वैदिक ग्रंथों व उपनिषदों से लेकर वर्तमान साहित्य ने मनुष्य जीवन को सदैव ही प्रभावित किया है ।
दूसरे शब्दों में, किसी भी काल के साहित्य के अध्ययन से हम तत्कालीन मानव जीवन के रहन-सहन व अन्य गतिविधियों का सहज ही अध्ययन कर सकते हैं या उसके विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । एक अच्छा साहित्य मानव जीवन के उत्थान व चारित्रिक विकास में सदैव सहायक होता है ।
साहित्य से उसका मस्तिष्क तो मजबूत होता ही है साथ ही साथ वह उन नैतिक गुणों को भी जीवन में उतार सकता है जो उसे महानता की ओर ले जाते हैं । यह साहित्य की ही अद्भुत व महान शक्ति है जिससे समय-समय पर मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं ।
साहित्य ने मनुष्य की विचारधारा को एक नई दिशा प्रदान की है । दूसरे शब्दों में, मनुष्य की विचारधारा परिवर्तित करने के लिए साहित्य का आश्रय लेना पड़ता है । आधुनिक युग के मानव जीवन व उनसे संबंधित दिनचर्या को तो हम स्वयं अनुभव कर सकते हैं परंतु यदि हमें प्राचीन काल के जीवन के बारे में अपनी जिज्ञासा को पूर्ण करना है तो हमें तत्कालीन साहित्य का ही सहारा लेना पड़ता है ।
वैदिक काल में भारतीय सभ्यता अत्यंत उन्नत थी । हम अपनी गौरवशाली परंपराओं पर गर्व करते हैं । तत्कालीन साहित्य के माध्यम से हम मानव जीवन संबंधी समस्त जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा उन जीवन मूल्यों का अध्ययन कर सकते हैं जिन्हें आत्मसात् करके तत्कालीन समाज उन्नत बना ।
इस प्रकार जीवन और साहित्य का अटूट संबंध है । साहित्यकार अपने जीवन में जो दु:ख, अवसाद, कटुता, स्नेह, प्रेम, वात्सल्य, दया आदि का अनुभव करता है उन्हीं अनुभवों को वह साहित्य में उतारता है । इसके अतिरिक्त जो कुछ भी देश में घटित होता है जिस प्रकार का वातावरण उसे देखने को मिलता है उस वातावरण का प्रभाव अवश्य ही उसके साहित्य पर पड़ता है ।यदि हम इतिहास के पृष्ठों को पलट कर देखें तो हम पाते हैं कि साहित्यकार के क्रांतिकारी विचारों ने राजाओं-महाराजाओं को बड़ी-बड़ी विजय दिलवाई है । अनेक ऐसे राजाओं का उल्लेख मिलता है जिन्होंने स्वयं तथा अपनी सेना के मनोबल को उन्नत बनाए रखने के लिए कवियों व साहित्यकारों को विशेष रूप से अपने दरबार में नियुक्त किया था ।
मध्यकाल में भूषण जैसे वीररस के कवियों को दरबारी संरक्षण एवं सम्मान प्राप्त था । बिहारीलाल ने अपनी कवित्व-शक्ति से विलासी महाराज को उनके कर्तव्य का भान कराया था । संस्कृत के महान साहित्यकारों कालीदास और बाणभट्ट को अपने राजाओं का संरक्षण प्राप्त था ।
” नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहिं काल । अली, कली सी सौं बँध्यो आगैं कौन हवाल ।” इस प्रकार हम देखते हैं कि जीवन और साहित्य को पृथक् नहीं किया जा सकता । उन्नत साहित्य जीवन को वे नैतिक मूल्य प्रदान करते हैं जो उसे उत्थान की ओर ले जाते हैं । साहित्य के विकास की कहानी वास्तविक रूप में मानव सभ्यता के विकास की ही गाथा है ।
जब हमारा देश अंग्रेजी सत्ता का गुलाम था तब साहित्यकारों की लेखनी की ओजस्विता राष्ट्र के पूर्व गौरव और वर्तमान दुर्दशा पर केंद्रित थी । इस दृष्टि से साहित्य का महत्व वर्तमान में भी बना हुआ है । आज के साहित्यकार वर्तमान भारत की समस्याओं को अपनी रचनाओं में पर्याप्त स्थान दे रहे हैं ।
----- आपका कलमकार गौरव झा
- Get link
- X
- Other Apps
Popular Posts
हिंदी कविता : गांव की यादें // गौरव झा
- Get link
- X
- Other Apps
Comments
Post a Comment